दे गया कोई संदेशा
दे गया कोई संदेशा, क्षितिज के उस पार से।
छोड़ दो अनुराग सारे, रागमय संसार से।
लहरें बन कर के बिखरतीं,
सिंधु में नव प्राण भरतीं,
जीवन नश्वर है जगत में,
सत्य का उद्घोष करतीं,
ढूंढती फिर फिर किनारा, दूर हो मझधार से।
दे गया कोई संदेशा, क्षितिज के उस पार से।
कोंपलों से भरा उपवन,
मधुप का अलमस्त गुंजन,
पवन संग कलियां संजोयें,
सुखद कल की आस नूतन,
बागवाँ ने फूल तोड़ा, झूमती मधु डार से।
दे गया कोई संदेशा, क्षितिज के उस पार से।
वक्त पाँवों चल रहा है,
सूर्य देखो ढल रहा है,
आँख भी कुछ हैं उनींदी,
स्वप्न कोई पल रहा है,
कर लो मन तैयार बंधु, प्यार से मनुहार से।
दे गया कोई संदेशा, क्षितिज के उस पार से।
डॉ॰ अखिलेश चंद्र गौड़, कासगंज, उ॰प्र॰(भारत)