गहराइयों में


गहराइयों में


 


मन के भीतर


अतल विलीन हो जाने वाली


गहराइयों में बिखरा है मात्र अंधकार


दिखता नहीं दूसरा छोर


झांक रही हूं सुनती हूं


आवाज  स्वयं के श्वासों की


वातावरण में मरघट सी खामोशी


अकस्मात ....


झन... न ...न .., झन.. न ..न


क्या था यह ? क्या है यह ?


अरे जंजीरों के टूटने की आवाज


मानो कुछ कैद से छूटकर


उमड़ना सा चाहता हो


आंखों को मूदें सोच रही हूं


क्या था यह ? क्या है यह ?


और तुम "याद " आ गये।


 


तुलसी कार्की, उदालगुड़ी, असम