हर कदम बेटीयां


हर कदम बेटीयां


 


पैरों पे पैर रख कर


भींच के मेरी उंगलियां,


अपनी मुट्ठी में।  


निश्छल मुस्कान लेकर


अपने होंठों पे,


तुम बार बार आती हो। 


कदम चाल करने को 


मैं हर बार तुम्हें वैसे ही


अपने पैरों पर चढ़ा कर


चलाने लगता हूं। 


इस एहसास के लिए


तुम स्वमं सक्षम हो,


अपने आप चलने को। 


पर मैं बाप हूं बेटी का


कैसे छोड़ दूं  तुम्हारा हाथ ।


 


भूपेंद्र कुमार त्रिपाठी 'नवीन', प्रयागराज, उ.प्र., भारत