कैसे कह दूं तन्हा हूं मैं


कैसे कह दूं तन्हा हूं मैं


 


रिश्तों की ओट से झांकता हूं मैं,


अपनी पहचान तलाशता हूं मैं,


हंस खेल कर बिता दिया पूरा दिन,


कैसे कह दूं तन्हा हूं मैं।


 


पंछियों के कलरव के साथ मैं,


बच्चों की किलकारियों के संग मैं,


तुमने तो देखा हंसता मुझे हर दम,


कैसे कह दूं तन्हा हूं मैं।


 


शहर भर की भाग दौड़ में,


मिलता रहा हर इंसान से मैं,


तूने तो मेरी मुस्कान ही  देखी,


कैसे कह दूं तन्हा हूं मैं।


 


यादों के अनन्त पिटारे में,


अट्टाहासों से गूंज पड़ा था मैं,


तुम्हारे संग बस हंस रहा था मैं,


कैसे कह दूं तन्हा हूं मैं।


 


गुज़र गया कितनी राहों में,


भीड़ भरे बाज़ारों से मैं,


हर किसी से हंस कर मिला मैं,


कैसे कह दूं तन्हा हूं मैं।


 


सब के दर्द भी डूबा मैं,


आंसुओं संग भी रहा हूं मैं,


पर हाथ मेरे कुछ लगा नहीं,


कैसे कह दूं तन्हा हूं मैं।


 



अजय "आवारा",  बेंगलुरु, कर्नाटक (भारत)