कुंडलिया

कुंडलिया


श्रम



श्रम सीकर अनमोल है, उन्नति का यह मूल।


पत्थर को भी चीर कर, खिल जाते हैं फूल।।


खिल  जाते  हैं फूल, अगर हो दिली तमन्ना।


मामूली     कृशकाय, बना दिग्दर्शक अन्ना।।


मान  अवध  की बात, न पालो जीवन में भ्रम।


जब तक चलती साँस, सदा करते जाओ श्रम।।



डॉ अवधेश कुमार अवध, मेघालय