लोगों को स्वीकार नहीं
ऊपर से तो हां है, उससे करते इनकार नहीं।
नारी का आगे बढ़ना, लोगों को स्वीकार नहीं।।
यहां आगे बढ़ने की, जब बात कभी चलती है।
संसद में होती उठा पटक, बात वहीं टलती है।।
उसकी भागीदारी की, बात नहीं बन पाती है।
बाधाओं के रहते फिर, उन्नत नहीं मिलती है।।
नारी को अपने मर्जी से, जीने का अधिकार नहीं।
नारी का आगे बढ़ना, लोगों को स्वीकार नहीं।।
घर की चारदीवारी में, दिन रात सताई जाती है।
और दहेज की खातिर, बेवजह जलाई जाती है।।
घर की महिलाएं ही होती हैं, महिला की दुश्मन।
उसकी गुणवत्ता, धीरे से घटाई जाती है।।
शुभ कार्यों में कभी, मिलता उसको उपहार नहीं।
नारी को आगे बढ़ना, लोगों का स्वीकार नहीं।।
भारत में सदा नारी, देवी समझी जाती है।
वैसे तो नारी की, यहां पूजा की जाती है।।
लेकिन झूठे सम्मान का, संबल देकर।
देवी कहकर फिर, दासी बनाई जाती है।।
अपनी व्यथा सुनाने को, कोई उसका दरबार नहीं।
नारी का आगे बढ़ना, लोगों को स्वीकार नहीं।।
जब तक नारी को, बढ़ने न दिया जाएगा।
इस देश का गौरव तब तक, न बढ़ने पाएगा।।
नारी जब तक, स्वयं संगठित नहीं होगी।
तब तक यह समाज, उसको सदा सताएगा।।
अधिकार मिले बिना, होता मर्यादित संसार नहीं।
नारी का आगे बढ़ना, लोगों को स्वीकार नहीं।।
सुरेश चंद्र सक्सेना, कासगंज, उत्तर प्रदेश (भारत)