मानक हिन्दी की विशिष्टताएँ
मानक भाषा के जितने लक्षण होते हैं वे सभी लक्षण मानक हिन्दी भाषा में विद्यमान हैं। कुछ विद्वानों के अनुसार मानक भाषा में चार तत्त्वों का होना आवश्यक है-
1. ऐतिहासिकता
2. मानकीकरण
3. जीवन्तता
4. स्वायत्तता
ये चारों तत्त्व मानक हिन्दी भाषा में विद्यमान हैं । हिन्दी भाषा की ऐतिहासिकता तो सर्वविदित है। इसका एक गौरवशाली इतिहास है, विपुल साहित्यिक परम्परा है। शताब्दियों से लोग हिन्दी भाषा का प्रयोग करते आ रहे हैं। हिन्दी का मानक रूप भी गत शताब्दी में आकार लेने लगा था। राष्ट्रीय आन्दोलन के दौरान हिन्दी का मानक स्वरूप विकसित होने लगा और स्वतंत्रता के पश्चात तो हिन्दी का मानक स्वरूप सुनिश्चित व सुनिर्धारित हो गया। मानक हिन्दी में जीवन्तता भी है। जीवन्तता इसी से सिद्ध होती है कि प्रसिद्ध वैज्ञानिक डॉ. जयन्त नारलीकर 'ब्रह्माण्ड के स्वरूप' पर अपना व्याख्यान मानक हिन्दी भाषा में देते हैं। कविता और कहानी से लेकर विज्ञान और दर्शन तक सभी क्षेत्रों में आज मानक हिन्दी भाषा का प्रयोग होता है। यह भाषा नए युग के साथ चलने में पूरी तरह सक्षम है। मानक हिन्दी में स्वायत्तता भी है। वह किसी अन्य भाषा पर टिकी हुई नहीं है। उसकी स्वतंत्र शब्दावली और अपना व्याकरण है।
इन चारों तत्त्वों के प्रकाश में यही कहा जा सकता है कि मानक हिन्दी भाषा एक सशक्त गतिशील और सर्वमान्य भाषा है।