राष्ट्रभाषा और राजभाषा

राष्ट्रभाषा और राजभाषा


 


समाज में जिस भाषा का प्रयोग होता है साहित्य की भाषा उसी का परिष्कृत रूप है। भाषा का आदर्श रूप यही है जिसमें विशाल समुदाय अपने विचार प्रकट करता है। अर्थात् वह उसका शिक्षा, शासन और साहित्य की रचना के लिए प्रयोग करता है। इन्हीं कारणों से जब भाषा का क्षेत्र अधिक व्यापक और विस्तृत होकर समस्त राष्ट्र में व्याप्त हो जाता है तब वह भाषा 'राष्ट्रभाषा' कहलाती है।


'राष्ट्रभाषा' का सीधा अर्थ है राष्ट्र की वह भाषा, जिसके माध्यम से सम्पूर्ण राष्ट्र में विचार विनिमय एवं सम्पर्क किया जा सके। जब किसी देश में कोई भाषा अपने क्षेत्र की सीमा को लाँघकर अन्य भाषा के क्षेत्रों में प्रवेश करके वहाँ के जन मानस के भाव और विचारों का माध्यम बन जाती है तब वह राष्ट्रभाषा के रूप में स्थान प्राप्त करती है। वही भाषा सच्ची राष्ट्रभाषा हो सकती है जिसकी प्रवृत्ति सारे राष्ट्र की प्रवृत्ति हों जिस पर समस्त राष्ट्र का प्रेम हो। राष्ट्र के अधिकाधिक क्षेत्रों में बोली जाने वाली तथा समझी जाने वाली भाषा ही राष्ट्रभाषा कहलाती है। राष्ट्रभाषा में समस्त राष्ट्र को एक सूत्र में बाँधने, राष्ट्रीय भावना को जागृत करने तथा राष्ट्रीय गौरव की भावना को संवहन करने की शक्ति होती है। राष्ट्रभाषा में समस्त राष्ट्र के जन-जीवन की आशाओं, आकांक्षाओं, भावनाओं एवं आदर्शों को चित्रित करने की अद्भुत शक्ति होती हैएक देश में कई भाषाएँ बोली जाती हैं परन्तु उनमें से किसी एक भाषा को ही राष्ट्रभाषा का स्थान दिया जाता है। राष्ट्रभाषा राष्ट्र के बहुसंख्यक लोगों के द्वारा समझी और बोली जाने वाली भाषा होती है।


'राजभाषा' का सामान्य अर्थ है- राजकाज की भाषा। दूसरे शब्दों में जिस भाषा के द्वारा राजकीय कार्य सम्पादित किए जाएँ वही 'राजभाषा' कहलाती है। भारत जैसी जनतंत्रात्मक प्रणाली में दोहरी शासन पद्धति होती है : 1. केन्द्र की शासन पद्धति और 2. राज्य की शासन पद्धति। इस कारण राजभाषा की स्थिति भी दो प्रकार की होती है। प्रथम केन्द्रीय अथवा संघ की राजभाषा तथा द्वितीय राज्यों की राजभाषा। आचार्य नन्ददुलारे वाजपेयी ने 'राजभाषा' को परिभाषित करते हुए कहा है : 'राजभाषा उसे कहते हैं जो केन्द्रीय और प्रादेशिक सरकारों द्वारा पत्र-व्यवहार, राजकाज और सरकारी लिखा-पढ़ी के काम में लाई जाए।'


उल्लेखनीय बात यह है कि संविधान में 'राष्ट्रभाषा' शब्द का कहीं प्रयोग नहीं किया गया है। संविधान के भाग-17 का शीर्षक है 'राजभाषा'। इसका अध्याय-1 'संघ की भाषा के विषय में हैइसके अनुच्छेद 343 में संघ की राजभाषा का उल्लेख है और अनुच्छेद 344 'राजभाषा' के सम्बन्ध में आयोग और संसद की समिति के बारे में है। अध्याय-2 का शीर्षक है : 'प्रादेशिक भाषाएँ', इसके अन्तर्गत अनुच्छेद 345 'राज्य की राजभाषा या राजभाषाएँ सम्बन्धी है, अनुच्छेद 346 'एक राज्य और दूसरे राज्य के बीच या किसी राज्य और संघ के बीच पत्रादि की राजभाषा' विषयक है। इन अनुच्छेदों में कहीं किसी भाषा को 'राष्ट्रीय भाषा' भी नहीं कहा गया। परन्तु उसके अनुच्छेद 351 में हिन्दी के 'राष्ट्रभाषा' रूप की ही कल्पना की गई है। राजभाषा आयोग की सिफारिश पर जो वैज्ञानिक तथा तकनीकी शब्दवली आयोग बना, उसने शब्दावली इस प्रकार तैयार की है कि वह केवल हिन्दी भाषा के लिए ही काम न आए बल्कि उसका प्रयोग सामान्यतः अन्य भाषाओं में भी हो सके। जिन दिनों संविधान सभा में भाषा के सम्बन्ध में विस्तृत चर्चा हुई, अनेक सदस्यों ने हिन्दी के लिए राष्ट्रभाषा शब्द का प्रयोग किया। इससे संविधान सभा के सदस्यों की भावना का पता चलता है।