राष्ट्रभाषा के रूप में हिंदी की भूमिका
हिंदी ग्यारहवीं सदी से ही अक्षुण्ण रूप से इस देश की राष्ट्रभाषा के रूप में प्रतिष्ठित रही है, भले ही राजकीय प्रशासन के स्तर पर कभी संस्कृत, कभी फारसी और अंग्रजी की मान्यता रही हो, लेकिन समूचे राष्ट्र के जन-समुदाय के आपसी सम्पर्क, संवाद-संचार विचार-विमर्श, सांस्कृतिक ऐक्य और जीवन-व्यवहार का माध्यम हिन्दी ही रही। वस्तुतः आदिकाल में लोक स्तर से लेकर शासन स्तर तक और सामाजिक-सांस्कृतिक क्षेत्र से लेकर साहित्यिक क्षेत्र तक हिन्दी राष्ट्रभाषा की कोटि की ओर अग्रसर हो रही थी।
मध्यकाल में भक्ति आन्दोलन के प्रभाव से हिन्दी भारत के एक छोर से दूसरे छोर तक जनभाषा बन गई।
आधुनिक काल में विदेशी अंग्रेजी शासकों को समूचे भारत राष्ट्र में जिस भाषा का सर्वाधिक प्रयोग, प्रसार और प्रभाव दिखाई दिया, वह हिन्दी ही थी, जिसे वे लोग हिन्दुस्तानी कहते थे।