टूटे पत्ते

 



टूटे पत्ते


 


टूटकर  पत्ता  गिरा  जब वृक्ष से, तो
सोचता था, है कहाँ उसका ठिकाना?
आग पानी या प्रभंजन भूमि अम्बर,
है उसे  किस ओर, कैसे हाय जाना?


वृक्ष भी उसके लिए व्याकुल, बिचारा,
और   पत्ता   दूसरों   के   है  सहारे।
मर  मिटेगा   दूर   होकर वृक्ष  से या,
पा  सकेगा,  हैं  जहाँ  पर पूर्व सारे।।


प्रकृति को आई दया असहाय पाकर,
और  पत्ते  को  मिलाया  मूल से तब।
बूँद बारिश की पड़ी फिर खाद बनकर,
जा खिला उस वृक्ष में नव फूल-सा अब।।


है इसी का नाम सुख-दुख मरण-जीवन,
बाल, यौवन, वृद्ध  तीनों  ही  दशा में।
प्रकृति  से  आना, उसी  में लौट जाना,
सीख पत्ते से, न भूलो, मद- नशा में।।


 


डॉ अवधेश कुमार अवध, मेघालय