उच्चारण की दृष्टि से व्यंजनों के आठ भेद

उच्चारण की दृष्टि से व्यंजनों के आठ भेद


 


उच्चारण की दृष्टि से व्यंजनों को आठ भागों में बांटा जा सकता है-


1. स्पर्शी- जिन व्यंजनों के उच्चारण में फेफड़ों से छोड़ी जाने वाली हवा वाग्यंत्र के किसी अवयव का स्पर्श करती है और फिर बाहर निकलती है।


निम्नलिखित व्यंजन स्पर्शी हैं -


क् ख् ग् घ्             


ट् ठ् ड् ढ्


त् थ् द् ध् 


प् फ् ब् भ्


2. संघर्षी - जिन व्यंजनों के उच्चारण में दो उच्चारण अवयव इतनी निकटता पर आ जाते हैं कि बीच का मार्ग छोटा हो जाता है तब वायु उनसे घर्षण करती हुई निकलती है। ऐसे संघर्षी व्यंजन हैं।


श्, ष, स्, ह्, ख, ज, फ्


3. स्पर्श संघर्षी- जिन व्यंजनों के उच्चारण में स्पर्श का समय अपेक्षाकृत अधिक होता है और उच्चारण के बाद वाला भाग संघर्षी हो जाता है, वे स्पर्श संघर्षी कहलाते हैं -


च, छ, ज्, झ्।


4. नासिक्य- जिनके उच्चारण में हवा का प्रमुख अंश नाक से निकलता है


ङ्, अ, ण, न, म्।


5. पाश्विक- जिनके उच्चारण में जिह्वा का अगला भाग मसूड़े को छूता है और वायु पार्श्व आस-पास से निकल जाती है, वे पाश्विक हैं।


जैसे - ल् ।


6. प्रकम्पित- जिन व्यंजनों के उच्चारण में जिह्वा को दो तीन बार कंपन करना पड़ता है, वे प्रकंपित कहलाते हैं।


जैसे–'र'


7. उत्क्षिप्त- जिनके उच्चारण में जिह्वा की नोक झटके से नीचे गिरती है तो वह उत्क्षिप्त (फेंका हुआ) ध्वनि कहलाती है।


ड्, ढ् उत्क्षिप्त ध्वनियाँ हैं।


8. संघर्ष हीन- जिन ध्वनियों के उच्चारण में हवा बिना किसी संघर्ष के बाहर निकल जाती है वे संघर्षहीन ध्वनियाँ कहलाती हैं।


जैसे–य, व।


इनके उच्चारण में स्वरों से मिलता जुलता प्रयत्न करना पड़ता है, इसलिए इन्हें अर्धस्वर भी कहते हैं।