घना कोहरा
मीनाक्षी डबास, नई दिल्ली, भारत
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कोहरे की यह सर्द ठंडी रातें
कितना कुछ छिपाए अंतरतर में
धुएँ की चादर चहूँ ओर
न आता कुछ भी नजर है
दृश्यमान जो जीवन था कभी
ओझल हुआ कहीं इस पल अभी
गहरी विश्रांति है फैली
मन में पीड़ा भी गहरी
पर न होना तू उदास
मन में रख तू हर पल आस
आएगा रवि किरण-रथ पर सवार
खिल उठेगी कलियां
होगी भंवरों की गुंजार
पक्षी चहकेंगे।
जीवन फिर महकेंगे l
धूप की गर्मी से होगा दूर
जन-जन की पीड़ा का अंधकार
वो जो अलसाए से सोए
कर्मठता का फिर गाएंगे गान
छिपा जो उसके अंतरतर में
फिर से बिखरेगा वो प्रकाश
जीवन में चमकेगा फिर से
कोहरे से हुआ जो अदृश्यमान
हर सांस में तू आस रख
खुद को खुद के साथ रख
हर बाधा पर पाएगा पार l
हौसलों की नौका पर रह सवार l
परिचय-
मीनाक्षी डबास
प्रवक्ता हिन्दी
शिक्षा निदेशालय नई दिल्ली, भारत
उद्देश्य- हिंदी को लोकप्रिय राष्ट्रभाषा बनाना
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