कलम उठाएँ
डॉ अलका धनपत, मॉरीशस
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आओ फिर से कुछ लिख पाएँ,
मन भरकर अब कलम उठाएँ।
चंदा, सूरज, नदी, पहाड़,
रिमझिम बूंदे, बादल, झरने।
या धरती का हो श्रृंगार,
या लहरों का पारावार।
शब्द दिलाते हैं आज़ादी,
शब्द बनाते हैं संसार।
अब शब्दों में भर हुंकार,
कुछ लिख डालें शब्द सँवार।
आओ फिर से कुछ लिख पाएँ,
मन भरकर अब कलम उठाएँ।
शब्द-शब्द से बने हैं शास्त्र,
औ शब्द की ताकत रोके शस्त्र।
आग लगा सकता है शब्द,
आग बुझा सकता है शब्द।
सींचे कलम भावी को पल-पल,
लक्ष्य न हो आँखों से ओझल।
रचनाकार तू है युग द्रष्टा,
कलमकार तू ही युग स्रष्टा।
आओ फिर से कुछ लिख पाएँ,
मन भरकर अब कलम उठाएँ।
रूप, रंग, रस, गंध को बाँधे,
शब्दों में पात्रों को साधे।
देशकाल की तोड़ सीमाएँ,
मानवता का गीत सुनाएँ।
तुम भी सोचो, मैं भी सोचूँ,
कलम उठाकर रूढ़ि पोछूँ।
कर लें नव युग का आह्वान,
कलम करे नूतन निर्माण।
आओ फिर से कुछ लिख पाएँ,
मन भरकर अब कलम उठाएँ।
परिचय-
डॉ अलका धनपत
वरिष्ठ व्याख्याता
अध्यक्ष
सृजनात्मक लेखन एवं प्रकाशन विभाग,
संपादक
वसंत एवं रिमझिम पत्रिका
महात्मा गांधी संस्थान
मॉरीशस
मॉरीशस रेडियो पर कार्यक्रम प्रस्तोता
सृजनात्मक लेखन
अनेक अन्तरराष्ट्रीय सम्मेलनों में शोध पत्र प्रस्तुति
राष्ट्रीय पाठ्यक्रम लेखन की समिति की सदस्य
जार्ज ग्रियर्सन अंतरराष्ट्रीय पुरस्कार से सम्मानित
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