खुली प्रकृति के चांद सितारे (कविता)

खुली प्रकृति के चांद सितारे



डॉ सुनील कुमार मानस, जूनागढ़ (गुजरात) भारत 


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खुली प्रकृति के चांद सितारे
हमको बहुत लुभाते हैं।
दु:ख, पीड़ा और दर्द जगत के
मन से दूर हटाते हैं।।


घोर अंधकार से लड़ते
उथल-पुथल सब हैं सहते।
मान-विसर्जित रंग जमीं पर
हर पल वे छिटकाते हैं।।
खुली प्रकृति...


नित अभिवादन सबका करते
कभी न अपने पथ से डिगते।
दीपों की माला सब बनकर
आसमान चमकाते हैं।।
खुली प्रकृति...


जिसको चंदा सब हैं कहते
रिश्ता उनसे मामा का रखते।
राहु ग्रसित बादल से लड़कर
चांदनी वे लुटाते हैं।।
खुली प्रकृति...


तारे सब झिलमिल हैं करते
हिलमिलकर सब साथ हैं रहते।
अमावस की काली रातों में
पथ हमको बतलाते हैं।।
खुली प्रकृति...


आसमां ये बहुत है सुंदर
दिखते इसमें बड़े कलंदर।
दिन औ रात प्रकृति साध्य सब
निर्मल ज्योति जलाते हैं।।
खुली प्रकृति...


 


कवि परिचय-


डॉ सुनील कुमार मानस
शिक्षा- परास्नातक, जे0आर0एफ0नेट एवं पीएच0डी0
व्यवसाय- सहायक आचार्य, बहाउद्दीन आर्ट्स कॉलेज, जूनागढ़ (गुजरात) 
रुचि- गद्य व पद्य की समस्त प्रचलित विधाओं में सृजन व आलोचन दृष्टि पत्र का संपादन


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