मुझे क्या पता था,
तू यूं गुज़र जाएगा।
आंखें रह जाएंगी ढूंढती तुझे,
और तू चला जाएगा।
अभी तो तेरी याद,
लिखी ही नहीं थी,
तस्वीर तेरी,
आंखों में बसी ही नहीं थी।
सोचती ही रह गई जिंदगी,
तेरे संग बात दो करेंगे।
हंसने मुस्कुराने के पल दो,
हम साथ जिएंगे।
तू छोड़ जाएगा जीवन अधूरा,
यह तो कोई सवाल न था।
रह गए कई सवाल उलझे से,
ढूंढता रहा जवाब अनसुलझे से।
सवाल यह जीने का
अधूरा रह जाएगा,
तू जिंदगी को यूं भूल जाएगा।
रंज तो न था तुझसे कोई,
क्या मेरा अंश न था तुझमें कहीं।
किसने सोचा था
तू यूं मुकर जाएगा,
इंतजार मेरा अधुरा रह जाएगा।
अजय "आवारा" बेंग्लूरू (कर्नाटक) भारत
प्राज्ञ साहित्य कवि/लेखक