भविष्य की आहट
कृष्ण देव तिवारी "कृष्णा" वडोदरा (गुजरात) भारत
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अंधकार ! गुह्यंधकार !
यही तो शाश्वत चिरंतन ।
बिलबिलायेगी मानवता !
साँस अटक जायेगी हलक में ।
चरमरा उठे सपने ,
जल गये सुलगते श्मशान में ,
खाक उड़ेगी ,
विभूति भभूति पदचिन्हों की गवाह होकर इतरायेगी ।
नियति हाशिये की इमारत पर बल्लरीनुमा बिछावन होगी ।
उजाला गीता पर हाथ रख अपने होने का सौंह लेगा।
काली परछाईयॉं
लौकी के बीज से पंक्तिबद्ध
श्वेत दन्त काढ़कर अट्टहास करेगा ।
कंपकपा रहे पवन ।
आग उगलेगी नदियाँ ,
कोई राम फिर से आग्नि -बाण संधान करने की जुर्रत नहीं करेगा !
मार्ग हेतु !
क्योंकि ?
निडर हो गयीं ज्वाला सहते सहते ,
खुद ज्वालामुखी बन ,
बह रहीं नदियाँ ,
जो अपने गर्भ से
सिर्फ अभिसिंचन किया
फूलों का।
कोई विशेष निहित स्वार्थ नहीं था
इन गंधहीन फूलों को जन्म देने का
बस सृष्टि की मर्यादा भंग करने की क्षमता नहीं
मुझ में ।
हाँ ! आज़ ममता की मर्यादा से डेढ़ -इंच
उपर उठकर !
दोनो किनारों को उर्ध्व कर
हवा में लहराते हुये कठोर भविष्यवाणी करती हूँ ।
संभल जा अंधेरे
फिर ना आयेंगे इष्ट तेरे
ओ माई गॉड हेल्प अस
निरर्थक !
मटमैला I
पुराना सा लगेगा ,तुम्हे नहीं !
उसे !
जिसे तुम आवाज़ दोगे ,
क्योंकि !
नियति बल्लरी का बिछावन देती तो है ,
मगर जल्द ही तेरे कर्तव्यों का परिमाण पेश
कर प्रलय की धार में बहा लेने के लिये ।
कवि परिचय-
कृष्ण देव तिवारी "कृष्णा"
कार्य क्षेत्र -असिस्टेंट प्रोफ़ेसर (नेट .जे आर एफ़ )
महाराजा सयाजीराव विश्वविद्यालय वडोदरा, गुजरात ।
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