जलियांवाला बाग का दर्द (कविता)

जलियांवाला बाग का दर्द



उमा कान्त, कासगंज (उ0प्र0) भारत 


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बाग जलियां का आज रोकर कहता।
तेरह अप्रैल को चल रहीं जब गोली थीं।।
सत्याग्रहियों के हाथ निहत्थे, सीना आगे।
और मुंह पर, इंकलाब की बोली थीं।।


हाय अभागा, मैं किस्मत का फूटा।
डायर का काल कहर मुझ पर टूटा।।
मेरा वक्षस्थल रक्तरंजित करके।
देशभक्त वीरों के प्राणों को लूटा।।


सीने में मेरे इस वेदना की, जल रही होली थी।
अंग्रेजी सेना में भी तो, भारत की ही टोली थी।।
फिरंगी डायर की क्या, इतनी महत्ती बोली थी।
जो अपनों ने अपनों पर ही, चला दी गोली थी।।


सैनिक गर मंगल पांडे होते, डायर की मौत आनी थी।
या मैं आंख मूंद कर कह दूं, यह उनकी नादानी थी।।
हरदम अपनों ने ही भारत को लूटा।
अपनों की गद्दारी ही, मेरी भी असल कहानी थी।।


(जलियांवाला बाग हत्याकांड में शहीद अमर सपूतों को भावपूर्ण श्रद्धांजलि)


कवि परिचय-


उमा कान्त 
●शिक्षा- परास्नातक, एम0फिल0 एवं नेट


●व्यवसाय- सहायक आचार्य, स्वामी केशवानन्द महाविद्यालय, लक्ष्मणगढ़, अलवर (राजस्थान) भारत 


●संपादक व प्रकाशक- 'प्राज्ञ साहित्य' (अंतरराष्ट्रीय संदर्भित त्रैमासिक हिंदी शोध एवं प्रचार पत्र)


●प्रकाशक- 'प्राज्ञ साहित्य' (प्रकाशन)


ग्यारह अंतरराष्ट्रीय सम्मेलनों/संगोष्ठियों व आठ राष्ट्रीय सम्मेलनों/संगोष्ठियों में पत्रवाचन। 


●अनुसंधान प्रयोगशाला, तेजपुर, असम (रक्षा अनुसंधान एवं विकास संगठन, रक्षा मंत्रालय, भारत सरकार) द्वारा आयोजित एक दिवसीय हिंदी कार्यशाला के मुख्य वक्ता एवं एकल संचालक के रूप में वैज्ञानिकों, अधिकारियों, सीनियर रिसर्च फैलोशिप एवं जूनियर रिसर्च फैलोशिप के समक्ष एकल संचालन।


विभिन्न सामाजिक कार्यों में सराहनीय योगदान हेतु  डब्ल्यूएचओ-यूनिसेफ, विश्व बैंक, डीआरडीओ, गूगल सहित अनेकों संस्थाओं द्वारा सम्मान व प्रमाण पत्र।


●रुचि- गद्य व पद्य की समस्त प्रचलित विधाओं में सृजन। 


●उद्देश्य- हिंदी को लोकप्रिय राष्ट्रभाषा बनाना। 


 


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