कोई बाजूओं सा मेरा बगीचा ले चला (गज़ल)

कोई बाजूओं सा मेरा बगीचा ले चला



मीनाकुमारी शुक्ल 'मीनू', राजकोट (गुजरात) भारत 


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मात्राभार - २५
काफि़या - ए (स्वर)
रद़ीफ - लगी


घर  परिवार में  बहस  कुछ ऐसी  होने  लगी।
चीर  गई  कलेजा   मेरा  नफरत  बोने  लगी॥(१)


बसे थे जिनके  दिलों  में हम प्राण  प्यारों से।
अब  आपत्ति  उनको  हमीं  से ही होने लगी॥(२)


शैलाब ए मुहब्बत ही बहती थी जिस जगह।
आज  वहाँ   हुई  बेबस  निगाहें,  रोने  लगी॥(३)


नफरतों   ने  बेसबब   आफत   ऐसी  उठाई।
उत्पत्ति  रिपुओं  की  आराम  से  सोने  लगी॥(४)


आँधी चली  नाराजगियों  की बड़ी जोर की।
जुबान  बनावटी  प्रेम  का  बोझ  ढोने  लगी॥(५)


दिलों में सभी के  तूफाँ सी मची थी हलचल।
शांति  दिलों की  बेसाख्ता  कहीं  खोने लगी॥(६)


सब्र  के   इम्तिहान   पर  जब   टूटी   बेसब्री।
बात  संपत्ति   बटवारे  की  अब   होने  लगी॥(७)


कोई   बाजूओं  सा  मेरा   बगीचा   ले  चला।
हिस्सेदारी   सभी   मकानों   की  होने   लगी॥(८)


किसी  के   हिस्से  में  है   दुकान   आई  मेरी।
हाय! हिस्से  की भूख, प्रीति कहीं खोने लगी॥(९)


मुझ  जिगर के  टुकडे  झगडे़ आपस में  ऐसे।
हिस्सेदारी   मेरे   तन   की   भी   होने   लगी॥(१०)


सब को  थी  ज़ुरूरत  संपत्ति  की,  मेरी  नहीं।
ठगा  सा  दिल,  कौने  में  पड़ी  मैं  रोने  लगी॥(११)


 


परिचय-


मीनाकुमारी शुक्ल 'मीनू'
पिता का नाम- श्री रामेश्वरप्रसाद मिश्रा  
जन्मतिथि- 05/11/1966
शिक्षा- परास्नातक 
कार्य क्षेत्र - पूर्व शिक्षिका 
रुचि- गद्य व पद्य की समस्त प्रचलित विधाओं में सृजन व विविध पत्र पत्रिकाओं में नियमित प्रकाशन
उद्देश्य- हिंदी को लोकप्रिय राष्ट्रभाषा बनाना


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