प्रसव वेदना
डॉ कोयल विश्वास, बेंगलुरु (कर्नाटक) भारत
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“आह! बहुत दर्द हो रहा है माँ,
प्रसव की यह वेदना दारुण,
रुक रुक कर आती जाती है,
कोई तो सुने मेरी चीखें करुण।”
माँ, बेटी के सिर पर हाथ रखकर,
ममता भरे स्वर में है कहती,
“बेटी, ज़रा इस दर्दभरी सुख को सह ले,
कल से दुनिया की सारी खुशियाँ बस तेरी।”
याद है मुझे आज भी, जब तू थी नन्हीं सी जान,
मैं भी मातृत्व के नियमों से थी अन्जान,
जीवन का अर्थ ही बदल गया था तुझे पाकर,
न जाने कितने साल मैंने बिताए, तुझे बस यूँ ही निहारकर।
फिर तेरे घुटनों के बल चलना,
तोतली बोली में मम्मा-पप्पा बोलना,
लगातार कहानी सुनने का ज़िद करना,
बड़े-बूढ़े सच कहते है, आसान नहीं है माँ शब्द सुनना।
समाज ने हमारे इस मासूम रिश्ते को दुत्कारा,
कहा –“पराया बच्चा नहीं होता है अपना।”
पर ममता पेट से जन्म नहीं लेती,
यह रिश्ता तो शिशु के साथ ही बढ़ती चली जाती।
मुझे नहीं मालूम कैसी होती है
यह सुखदायक प्रसव वेदना।
लेकिन तुझे पाने के बाद कभी भी,
एहसास ही नहीं हुआ इस कमी की।
तेरे दर्द को मैं करती हूँ महसूस,
भले ही मैंने तुझे नहीं जना,
माँ हूँ मैं तेरी बेटी,
अब नानी का है फ़र्ज़ निभाना।
परिचय-
नाम – डॉ कोयल विश्वास
जन्म – 19 दिसम्बर 1978
भाषा – बंगला, हिन्दी, कन्नड़, तमिल, अंग्रेजी
विधाएँ – कहानी, कविता, आलोचना, अनुवाद, जीवनी लेखन
कार्य क्षेत्र -सहायक प्रोफेसर, विभागाध्यक्ष, हिन्दी विभाग, माउंट कार्मल कॉलेज स्वायत्तशासी,बेंगलुरु
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