आज लहू की जात पूछने निकला हूँ (कविता)

आज लहू की जात पूछने निकला हूँ 



हर्षवर्धन आर्य, दिल्ली, भारत 


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आज लहू की जात पूछने निकला हूँ 

इन्साँ की औकात पूछने निकला हूँ ।।

 

किसने बाँटा मजहब की दीवारों से

जाति, धर्म और रंग भेद के नारों से 

ऊँच-नीच और छुआ-छूत की खाई से

डसा है किसने विष में बुझे विचारों से 

ये मन के जज़्बात पूछने निकला हूँ ।

आज लहू की जात ---

 

इससे ,उससे , खुद से, पूछूँगा सब से 

ईश्वर ,अल्ला,वाहे गुरु से या रब से 

खुद के क्यों धर बैठा इतने नाम भला 

भटक रहा बन  दीवाना इन्साँ कब से

है किसकी खुराफ़ात पूछने निकला हूँ 

आज लहू की जात ---

 

पत्थर के घर ,गाँव ,शहर सारे पत्थर 

पत्थर दिल इंसान जहाँ मारें पत्थर 

तिल तिल मरती मानवता बिन संवेदन 

मति दबा कर बैठे  हत्यारे पत्थर 

इस पत्थर पर कौन करे आघात पूछने निकला हूँ  ।

आज लहू की जात ---

 

हाय ।कब मानव खुद को पहचानेगा 

किसने ,क्यों भेजा धरती पर जानेगा

एक पिता वह परम् पुरुष ,माता धरती 

सब उनकी संतान ,बात यह मानेगा

बस ये चंद सवालात पूछने निकला हूँ ।

आज लहू की जात पूछने निकला हूँ ।।

 

कवि परिचय-



हर्षवर्धन आर्य 

( कवि , चित्रकार , स्वर्णशिल्पी )

* अध्यक्ष - सृजन सेतु :आर्यवर्त शैक्षणिक एवं सांस्कृतिक न्यास ( पंजी.)

* पूर्व पीठाध्यक्ष : कला एवं संस्कृति, रोटरी मण्डल 3012

* पूर्व अध्यक्ष : रोटरी क्लब , दिल्ली अपटाउन 

* संपादक : समवेत स्वर  (साप्ताहिक रोटरी समाचार पत्र )

* दिन के उजाले में ( कविता संग्रह )

* सपनों में चिड़िया ( कविता संग्रह )

* राजू का रोबोट ( बाल कविताएँ  )

* सच्चे मोती   ( बाल कविताएँ  )

* भारत, हंगरी, जर्मनी, आस्ट्रिया, इटली, ताशकन्द, मॉस्को, मॉरीशस में चित्र कलाकृतियाँ प्रदर्शित । 

* साहित्य अकादेमी, हिन्दी अकादमी, भारतीय सांस्कृतिक सम्बन्ध परिषद, विश्व हिन्दी साहित्य परिषद,    आकाशवाणी, दूरदर्शन सहित अनेक देशों में आयोजित हिन्दी आयोजनों में काव्य पाठ । 

* 11वें विश्व हिन्दी सम्मेलन -मॉरीशस में '' विश्व, हिन्दी और भारत '' विषयक  वृहद चित्रकृति का निर्माण।* साहित्य अकादेमी, संस्कृति मन्त्रालय, भारत सरकार से '' कला और कविता : परस्पर संवाद '' विषयक       कनिष्ठ अध्येयतावृत्ति प्राप्त। 

उद्देश्य- हिंदी को लोकप्रिय राष्ट्रभाषा बनाना। 


 

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