बादल (कविता)

बादल


मीनाक्षी डबास, नई दिल्ली, भारत


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नभ के शोभकारक

घने घने मतवाले

वसुधा के जीवन दायक

बादल काले काले

गरज गरज हुंकार भरो

 

दामिनी प्रिया को संग लेकर

वाष्प से रूप साकार करो

नन्हीं नन्हीं बूंदे बनकर

जीवन का उद्धार करो

 

मृतिका के कण कण में बसकर

नवजीवन की शुरुआत करो

फसलों के उपकारक बनकर

कृषकों की मुस्कान बनो

 

नदियों की धारा संग बहकर

सागर का फिर रूप धरो

चौपायों की क्षुधा मिटाकर

मन को उनके तृप्त करो

 

पक्षीगण के कंठ से मिलकर

सुरों की मीठी तान बनो

तृप्त धरा पर आज बरस कर

सबका शीतल प्राण करो

 

प्रिय का तुम संदेशा लेकर

कालिदास के मेघदूत बनो

कवियों की रचना में साकार

रंग बिरंगे रूप धरो

 

कागज की नौका पर सवार

इस पार चलो, उस पार चलो

उमड़ उमड़ घुमड़ घुमड़ कर

जीवन शक्ति का संचार करो

 


अलसायों की तन्द्रा लेकर

कर्मठता की बौछार करो

हर प्राणी के हितकारक बनकर

बादल बरसो! बादल बरसो!


 


परिचय-


मीनाक्षी डबास


कार्यक्षेत्र- प्रवक्ता हिन्दी, राजकीय सह शिक्षा विद्यालय पश्चिम विहार शिक्षा निदेशालय राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र दिल्ली। 


प्रकाशित रचनाएं - घना कोहरा, बारिश की बूंदे, मेरी सहेलियाँ, मन का दरिया, खो रही पगडंडियाँ। 


उद्देश्य - हिन्दी भाषा का प्रशासकीय स्तर पर प्रथम कार्यालयी भाषा बनाने हेतु प्रचार प्रसार l


 


 


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