हिंदी विभाग और लंदन की पत्रिका ‘पुरवाई’ के संयुक्त तत्वाधान में ‘कोरोना, समाज और साहित्य’ विषय पर अंतरराष्ट्रीय वेबिनार हुआ आयोजित
( मुख्य अतिथि, प्रो. श्रीप्रकाश मणि त्रिपाठी जी )
( मुख्य वक्ता, श्री तेजेन्द्र शर्मा जी )
भारत के डॉ. भीमराव अंबेडकर विश्वविद्यालय के कहैयालाल माणिकलाल मुंशी हिंदी तथा भाषाविज्ञान विद्यापीठ एवं साहित्यिक-सामाजिक सरोकारों से जुड़ी पत्रिका ‘पुरवाई’, लंदन के संयुक्त तत्वाधान में आयोजित ‘कोरोना, समाज और साहित्य’ विषय पर दिनांक 24 मई 2020 को अंतरराष्ट्रीय वेबिनार का आयोजन किया गया।
कार्यक्रम का प्रारम्भ करते हुए विद्यापीठ के निदेशक प्रो. प्रदीप श्रीधर द्वारा अतिथियों का स्वागत एवं परिचय प्रस्तुत किया गया। परिचय एवं स्वागत के बाद संगोष्ठी के संयोजक प्रो. श्रीधर ने विषय प्रवर्तन करते हुए कहा कि वर्तमान समय में सम्पूर्ण विश्व, कोविड-19 जैसी महामारी के संकटग्रस्त दौर से गुजर रहा है। इस दौर में आर्थिक, सामाजिक, राजनैतिक तानाबाना चरमरा गया है। ऐसी स्थिति में साहित्य की लोकमंगलकारी भूमिका महत्वपूर्ण हो जाती है। समकालीन परिदृश्य में मानवता को नव उत्स प्रदान करने वाले साहित्य की मंगलकारी भूमिका को विश्लेषित करने की आवश्यकता है। प्रो. श्रीधर ने डॉ. हरीश कुमार शर्मा की अधोलिखित पक्तियों को उद्धृत करते हुए यह दर्शाया कि साहित्य किस प्रकार से मानव को संकट की घड़ी से निकालने में सहायक सिद्ध हो सकता है -
“ लड़ेंगे हम कोरोना से, विजय पाकर रहेंगे हम।
जगत को आत्मबल की शक्ति, दिलाकर रहेंगे हम।
भयंकर यह समय का शाप है, मुश्किल घड़ी भारी;
कुटिल यह चक्र भेदेंगे, विजय गाथा लिखेंगे हम। ”
ऑक्सफोर्ड विश्वविद्यालय, ऑक्सफोर्ड के डॉ. इम्रै बंगा ने विशिष्ट वक्ता के रूप में वक्तव्य देते हुए कहा कि कोरोना से समस्या के आलावा इससे उत्पन्न चुनौतियों का सामना करने हेतु साहित्य की विभिन्न प्रवृत्तियों को अपनाने की जरुरत है। इसके लिए उन्होंने वर्तमान में पठन पाठन के लिए एलेक्ट्रॉनिक माध्यमों के विभिन्न स्वरूपों के परिवर्तन को महत्व देने की बात की। हमें स्क्रीन की जगह मौखिक साहित्य जैसे; ऑडियो किताबें और ई-रीडर आदि माध्यमों का प्रयोग करना चाहिए। भारत में मौखिक साहित्य की परम्परा काफी पुरानी है। आज के समय में हम मौखिक साहित्य में लौट कर स्क्रीन के थकान से निजात पा सकते हैं।
डेनमार्क की वरिष्ठ साहित्यकार श्रीमती अर्चना पैन्यूली ने विशिष्ट वक्ता के रूप में वक्तव्य देते हुए कहा कि साहित्य का काम सिर्फ मनोरंजन ही नहीं, वल्कि समाज को नई दिशा देना भी होता है। साहित्य सेवा भाव भी जगाता है। कोरोना वायरस और लॉकडाउन से जिन्दगी की गाड़ी पटरी से उतरी है। कोरोना संकट के इस दौर में साहित्यकार रचनाओं के जरिये उम्मीद की नई आशा दिखा रहें हैं। संस्थान डिजिटल वेबीनार, वेब गोष्ठी आयोजित कर लोगों को परस्पर जोड़ रहें हैं, परिचर्चा के लिए प्लेटफोर्म दे रहें हैं।
कोपेनहेगन, विश्वविद्यालय, डेनमार्क के एल्मर रेनर ने विशिष्ट वक्ता के रूप में बोलते हुए कहा कि आज दुनिया का कोई भी कोना ऐसा नहीं बचा है, जहाँ कोरोना वायरस का असर न पड़ा हो। कोरोना वायरस के फैलने से जो परिवर्तन समाज, शिक्षण (विशेष रूप से हिंदी शिक्षण) और साहित्य पर आनेवाले हैं, उसके बारे में तो इतिहासकार ही आगे बता पाएँगे - और उसमें अभी काफ़ी समय लगेगा। कोरोना वायरस की आड़ में हो रही गतिविधियों के कुछ पहलुओं एवं क्वारंटाइन के समय में हो रहे आधुनिक गद्य लेखन शुरूआत करने की आवश्यकता है।
लंदन की वरिष्ठ साहित्यकार श्रीमती ज़किया ज़ुबैरी ने सारस्वत अतिथि के रूप में वक्तव्य देते हुए कहा कि "कोरोना ने समाज, सरकार और सृजन पर गहरा असर छोड़ा है। किसी को ऐसी विश्व महामारी से निपटने का कोई अनुभव नहीं था। अमेरिका और यूरोपीय देश इसके सामने घुटने टेक चुके हैं। सोशल मीडिया पर कोरोना पर लिखा जा रहा साहित्य ख़ुद किसी वायरस से कम नहीं है। लेखकों को किसी दबाव में लिखने से बचना चाहिए। जब हमारे अनुभव पुख़्ता हो जाएं, तब इस विषय पर लिखा जाए।"
लंदन के वरिष्ठ साहित्यकार श्री तेजेन्द्र शर्मा ने मुख्य वक्ता के रूप में बोलते हुए कहा कि कोरोनाकाल में सामाजिक लॉकडाउन जहां सुरक्षा प्रदान कर रहा है वहीं कल्पनाशील लेखकों को सृजन का समय दे रहा है। लेखक निरंतर दिमाग़ में लिखता रहता है। सोशल लॉकडाउन का इस्तेमाल अपने साहित्य को काग़ज़ पर लाने में करे।"
इंदिरा गांधी राष्ट्रीय जनजातीय विश्वविद्यालय, अमरकंटक के कुलपति माननीय प्रो. श्रीप्रकाश मणि त्रिपाठी जी ने मुख्य अतिथि के रूप में वक्तव्य देते हुए कहा कि आज की परिस्थिति कोरोना जनित परिस्थिति है। अदृश्य शत्रु के कारण स्मस्या के समाधान को लेकर लोगों की भूमिका में संशय है। इस विध्वंसक आपदा में संचार का माध्यम महत्वपूर्ण है। आज का समाज मानव समाज की जगह बाजार समाज हो गया है। आज सबके लिए सबके पास समय है। जिस कारण हम भावना प्रधान हो गए हैं। यही भावना साहित्य को जन्म देती है। महामारी के कारण समाज में व्याप्त भय, अवसाद, आर्थिक समस्या से निजात पाने के लिए साहित्य रचना की आवश्यकता है।
माननीय कुलपति प्रो. अशोक मित्तल जी ने अध्यक्षीय उद्बोधन कहा कि आज तक किसी भी महामारी में इस तरह से घर वापसी किसी ने नहीं देखा था। कोरोना के कारण जीवन की व्यस्तता अचानक से थम जाने से मानव तनाव और अवसाद में आने लगा है, ऐसे में साहित्य हमें इन सब से बचाता है। साथ ही साथ उन्होंने साहित्यकारों से अपील की इस वर्तमान स्थिति के विभिन्न सामाजिक स्थिति के बारे में वे ईमानदारी से लिखें। अंत में इस महत्वपूर्ण विषय पर वेबीनार के आयोजन के लिए प्रो. श्रीधर की सराहना की।
अंत में विद्यापीठ के निदेशक प्रो. प्रदीप श्रीधर ने सभी अतिथियों एवं प्रतिभागियों का धन्यवाद ज्ञापन किया
वेबीनार में डॉ. रीतेश कुमार, डॉ. नीलम यादव, डॉ. रणजीत भारती, श्रीमती पल्लवी आर्या, डॉ. केशव, डॉ. अमित सिंह, डॉ. अजय शर्मा, श्रीमती मोहनी दयाल, डॉ. नीतू बंसल, डॉ. आदित्य, डॉ. प्रदीप कुमार आदि मौजूद रहे।
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