बिखरा घर
तुलसी कार्की, असम (भारत)
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बहुत सालों बाद लौटा हूं
अपने वीरान मकान की ओर
सुकून तलाशती जिंदगी में
इस बार तय कर आया हूं
इसका मोलभाव कर जाऊंगा
ताले लगाने जैसा कुछ भी न था
पर जंग लगी चाबी से खुल गया
एक चिंघाट में वर्षों का अकेलापन
बयां करता हुआ दरवाज़ा
धूल धूसरित
मक्कड़ जाल
छिपकलियों का साम्राज्य
जज्जर अलमारी
मां की साड़ी का गट्ठर
(मेरे गीले बाल और साड़ी के आंचल से पोंछती मां )
टूटा तवा
(तवे की पहली रोटी गाय को खिलाती मां)
लाल चीटियों का घरौंदा पुराना चूल्हा
(भूख लगी होगी न बेटा पूछती मां)
चावल के टिन का कनस्तर
(मेरे कंचो की जिद्द पर जादु से पैसे निकालती मां)
कुछ सुखी दवाइयों की शीशियां
(मेरे लौट आने की आस में जीती बूढ़ी मां)
खिड़की के पास लगी कुर्सी
(रास्ते पर टकटकी लगाए झुर्रियों वाली मां)
पुताई के लिए तरसता तुलसी चोबारे में मिट्टी का दिया
(मेरे माथे नजर का काला टीका लगाती मां)
दरवाज़े के पीछे छुप जाना चाहता हूं
(मुझे खुश देखने के लिए डरने का नाटक करती मां)
बिखरा सामान ....बिखरी यादें .... बिखरा इंतज़ार
अब मां कभी नहीं आयेगी......।
परिचय-
तुलसी कार्की
सुपुत्री- चंद्रा प्रभा
पति का नाम- भुवन छेत्री
जन्मतिथि- 13/01/1980
शिक्षा- शोधार्थी (हिंदी), स्नातकोंत्तर हिंदी, स्नातकोंत्तर मानव अधिकार, स्नातकोंत्तर ट्रांसलेशन
प्रकाशित रचनाएं-
कविताएं- मां, लकीर, सपने, खामोशी, कहीं कुछ,भूल किसकी, आदि।
लेख- अंक और प्रतिशत की दौड़, कथनी और करनी में फर्क, हिंदी है हम वतन है हिंदुस्तान हमारा, आदि।
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