कहाँ हैं मनुष्य
डॉ. जयंतिलाल. बी.बारीस, वापी (गुजरात) भारत
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पलाश में खिले हैं मनोहारी सिंदूरी फूल
नीले आसमान के नीचे बिल्कुल सुनसान सड़क
ढूँढ़ रही है राहगीरों को
सड़क किनारे पर कटे हुए गेहूँ के खेत सुस्ता रहे हैं
अनमनी होकर बतिया रही हैं खजूरें
हैरान हैं पक्षी कि कहाँ चले गए लोग अचानक
कोलाहल वाली धरती पर फ़िलहाल मौन का साम्राज्य है
पेड़ उदास हैं और दिशाएं आश्चर्यचकित
आसमान अपलक देख रहा है निःशब्द धरती को
जानवर आने लगे हैं सड़कों, गाँवों और शहरों में
जैसे वे इंसानों की अनुपस्थिति देखकर
उनकी ख़ैरियत पूछने आये हों
कि आख़िर सन्नाटा क्यों है
बाजार की सड़कों और मोहल्लों की गलियों में ?
कोई बादल नहीं फट गया है अचानक
पर यह समय की कैसी उदास करवट है ?
सोच रही है सुंगन्ध से आप्लावित स्वच्छ हवा
निर्मल फेनिल नदियां बही जा रही हैं निर्जन
सुवासित सुन्दर फूलों से लदे हैं बगीचे
पर क्यों नहीं आ रहे फूल तोड़ने वाले
गुँजार करते हुए भँवरे परस्पर पूछ रहे हैं यह प्रश्न
चारों ओर से आ रही है व्याकुल आवाज़
कहां हैं प्रकृति के प्रिय सहचर
और सौन्दर्य के उपभोक्ता मनुष्य
कवि परिचय-
डॉ. जयंतिलाल. बी.बारीस
शिक्षा- परास्नातक, एवं एम. फिल. एवं पी.एचडी.
कार्य क्षेत्र - असिस्टेंट प्रोफेसर, आर. के. देसाई कॉलेज ऑफ एजूकेशन, वापी, गुजरात
रुचि- गद्य व पद्य की समस्त प्रचलित विधाओं में सृजन व विविध पत्र पत्रिकाओं में नियमित प्रकाशन
उद्देश्य- हिंदी को लोकप्रिय राष्ट्रभाषा बनाना
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