कोशिशें
अनवर हुसैन, अजमेर (राजस्थान) भारत
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कोशिशें हमें अब रंग दिखाने लगी है
बात सब को समझ अब आने लगी है
हाथ धोना जरूरी क्यों बताया गया?
धूलाई से महामारी खौफ खाने लगी है
करीब रहे मगर एक मीटर की दूरी से
यही सावधानी वबा को सताने लगी है
ना फेल पाए गलती से ध्यान पूरा रखें
सावधानी यही संक्रमण मिटाने लगी है
लॉकडाउन की जरूरत हम रखें ता उम्र
जरूरतें रोज की , हमें समझाने लगी है
वक्त कैसे निकालेंगे , हम - ए - जिंदगी
आत्मानुशासन हमें वह सिखाने लगी है
रविवार,परिवार से रहे हम सदा सरोबार
खुशियां सबको पाठ ऐसा पढ़ाने लगी है
जान है तो जहान है अभी यही पैगाम है
इंसानियत फिर से , यह दिखाने लगी है
वक्त की साजिशें , सितम गर बहुत हुई
पर , रिश्तो के मायने समझाने लगी है
दे हाथों में हाथ, चलेंगे सब साथ - साथ
भावना प्यार,भाईचारे की बढ़ाने लगी है
यकी है कामयाबी मिलेगी हमें एक रोज
नाकामियां फिर से मुंह छिपाने लगी है
जज्बा जिनका सलामत रहा इस वबा में
दुआएं उनके हक में मांगी जाने लगी है
ढूंढते फिर रहे थे जिस अदृश्य शक्ति को
पहने इंसानी लिबास नजर आने लगी है
एक सलाम दिल से उन सब को हमारा
जिनके समर्पण से मानवता हर्षाने लगी है
सलामत रहे नेकदिली उन सबकी उम्र भर
लबों पे दुआ खुद - ब - खुद आने लगी है
कवि परिचय-
अनवर हुसैन
सरवाड़ जिला अजमेर
रुचि- गद्य व पद्य की प्रचलित विधाओं में सृजन
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