मां (दोहे) - वृंदावन राय सरल

मां 



वृंदावन राय सरल, सागर (म.प्र.) भारत 


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मां चंदा की चांदनी, मां सूरज की धूप। 
वक्त पड़े ज्वाला मुखी, वक्त पडे जल रूप।। 


सरिता मां की नम्रता, इसमें इतना प्यार। 
जीवनभर टूटे नहीं, जिसकी अविरल धार।।


मां मीरा की पीर है, मां कबीर का सत्य। 
मां अमीर की प्रार्थना, तुलसी का साहित्य।।


मां शाला मां है गुरु, मां जीवन आधार। 
पौधा मां के प्यार से, पेड़ बने छतनार।।


मां में तीरथ धाम सब, मां अटूट विश्वास। 
मां के चरणों में हुआ, जन्नत का अहसास।।


मां में गीता सार है,मां है वेद-पुरान। 
मां है पावन बाइबिल,मां में हर ईमान।।


 


कवि परिचय-


वृंदावन राय सरल


कार्यक्षत्र- सेवा निवृत्त सिविल अभियंता


रुचि- पद्य की समस्त प्रचलित विधाओं में सृजन। 


उद्देश्य- हिंदी को लोकप्रिय राष्ट्रभाषा बनाना। 


 


 


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