माँ (कविता) - जगदीप सिंह मान "दीप"

माँ



जगदीप सिंह मान "दीप", दिल्ली, भारत


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माँ तू स्नेह की सूरत है, तू ममता की मूरत है,

तू पावन प्रीत निर्झरी है, तू मातृरूप प्रकरी है,

ये जग है ये कानन काँटों का,

तू फुलवारी है, ओ माँ,

माँ तू स्नेह की सूरत है,तू ममता की मूरत है।

मामूली नाम नहीं है माँ तू

जीवन का सरताज है तू ,

स्वर्ग सा बचपन मिला मुझे,

इस वैभव की वरदानी है तू ,ओ माँ,

माँ तू स्नेह की सूरत है तू ममता की मूरत है।

मैं जब हंँसता हूंँ तू हंँसती है मांँ,

मैं जब रोता हूंँ तू रोती है मांँ,

मेरे कष्टों को अपने कष्टों पे वारी है,

सब कुछ मेरे पे तू बलिहारी है,ओ माँ,

माँ तू स्नेह की सूरत है, तू ममता की मूरत है।

माँ तू केवल प्यार नहीं है,

मांँ तू बस श्रृंगार नहीं है,

माँ तू जग की वो शक्ति है,

जिसका पारावार नहीं है,ओ माँ,

माँ तू स्नेह की सूरत है,तू ममता की मूरत है।

मांँ बिना प्यार कहांँ है ?

मांँ बिना सूना सारा जहाँ है,

माँ ने कुदरत को रचा या कुदरत ने मात,

धन्य वही है जो जान ले, दोनों के जज्बात,ओ मांँ,

माँ तू स्नेह की सूरत है,तू ममता की मूरत है।

 


कवि परिचय-


जगदीप सिंह मान "दीप"


शिक्षा- एम.ए.हिन्दी,बी.एड,NET


प्रकाशित रचनाएं- "कल ही किनारे आएंँगे", "भारत ना कभी हारा था ना कभी हारेगा", "जग का यही दस्तूर", "देखे हुए सपने उसके हवा हवाई होंगे", "मान जा कहना मेरा",कहानियाँ-"प्रेरणा", "आत्मविश्वास"


उद्देश्य- मेरे हृदय की भाषा हिंदी का वैश्विक स्तर पर प्रचार प्रसार करना।

 


 


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