मानवता का ये कैसा विकास?
डॉ मधुछन्दा चक्रवर्ती, बेंगलूरु (कर्नाटक) भारत
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मैं एक आम आदमी हूँ
मैं सच्चा मनुष्य हूँ।
मेरा विकास वर्षों से चल रहा है
मैंने किए हैं अनेक आविष्कार
पर कभी-कभी सोचता हूँ
मानवता का विकास देखने में कैसा लगता होगा?
तो मैं पूर्वज बन स्वर्ग से एक दिन देखने लगा।
क्या दिखा आकाश से
सड़क पर चले जा रहा हूँ बेधड़क
थूँकता हुआ पान और पिक
देख मुझे कै आ गयी
जो आगंतुक मिला सड़क पर एक।
जहाँ जी चाहा बहायी नदि
जहाँ जी चाहा प्रसाद भी बांटा
खेत हो चाहे रास्ते का किनारा
एक दिन दिखा तो
पुलिस ने मारा।
बाहर की दुनिया देख दुखी हो गया
सोचा घर जाऊँगा तो सुख मिलेगा।
अब घर का नज़ारा भी कुछ कम न था,
इस खयाल में कुछ गम न था।
तो घर पर क्या देखता हूँ
रसोई में बनी रही है तरकारी
खिड़की से खुशबू निकल रही है भारी।
अरे अरे! ये क्या?
कचड़े के डिब्बे का निशाना साधे
अर्जुन की सी महिला दिखी ये राधे
तुरंत फेंका प्लास्टिक का गोला
डिब्बे से जा टकरा सड़क पे गिरा
कुत्तों ने सूंघी बारम्बार
सोचा खाने को क्या गिरा होगा इस बार?
ये शायद होगी एक घर की झलक
चलो चले दूसरे घर तलक
वहाँ देखा तो नज़ारा ही कुछ और था
लुकते-छिपते जा रहा कोई था
अचानक सड़क के मोड़ पर रुका वह शख्स था
देख इधर-उधर, कुछ फेंक दौड़ चला था।
पास गया तो मिला कचरो का ढेर
जिस पर लड़ने लगे कुत्ते भी बन शेर
ये देख स्वर्ग से में विचलित हो उठा
आखिर प्रश्न मन में उठा
क्या ये मेरी ही विकसित हुई प्रजाती है
क्या ये शिक्षिक समाज की छवि है
क्या ये विवेक से चलने वाली संस्कृति है।
इतने प्रश्नों से मन विचलित हो उठा ही था
तभी नज़र में कुछ और भी पड़ा।
नेता जी आ रहे हैं कोई
मार्ग में बिछे हैं फूल पत्ते और कालीन लाल
सड़क का ये किनारा कितना सुंदर दिखा पड़ा
वही सड़की की दूसरी ओर
नाली की सफाई में लगा कोई और
डूब कर निकालता वह कई परते
सोचता हूँ निकलेगा कितना और?
नेता जी हो या आम आदमी
किसी को भाँति नहीं बदबू भरी गंदगी
लेकिन किसी की सोच में यह नहीं आता
विकास भी इस तरह का किसी को नहीं भाता।
परिचय-
जन्म-23 अप्रैल 1983
जन्मस्थान– मणिपुर इम्फाल
शिक्षा– एम. ए (हिन्दी), पी.एच.डी
कार्यक्षेत्र- सहायक प्रोफेसर, हिन्दी विभाग, माउंट कार्मल कॉलेज स्वायत्त, बैंगलुरु
कहानी- बुलबुला, फैसला(समनव्य पूर्वोत्तर पत्रिका में प्रकाशित), मासूम (साहित्य सुधा वेब पत्रिका में प्रकाशित) दावानल(विश्व हिन्दी साहित्य मॉरिशस में प्रकाशनाधीन)
कविता- बचपन से आजतक, एक दिन, भूख, रिश्तें,ऐसा क्यों होता है?, मेरे बाग के फूल, रंग जिन्दगी के, सवाल नज़रों का, हज़ारों ख्वाहिशें दिल में, न मजबूर करों किसी को, चाह कर भी, तेरे साथ -(अनुभूति, मुक्त कथन, तथा वैश्य-वसुधा तथा प्रतिध्वनि पत्रिका में प्रकाशित) विशाल गगन, हौसल( साहित्य सुधा वेब पत्रिका में प्रकाशित),
आलोचना- उपन्यासकार निराला--एक अध्ययन(पुस्तक)
33 शोधालेख विभिन्न शोध पत्रिकाओं तथा पुस्तकों में प्रकाशित।
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