मैं लिख न सका (गद्य काव्य) - डॉ अवधेश कुमार अवध

मैं लिख न सका



डॉ अवधेश कुमार अवध, मेघालय 


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लोगों ने कहा
लिखो
मैंने कहा
क्या?
लोगों ने कहा
वही जो रोज लिखते हो
मैं गिड़गिड़ाया
रोज तो अलग - अलग ही लिखता हूँ
लोगों ने घूरा
मैं सूखकर हुआ अधूरा
सर चकराया
तर्जनी से गंजेपन में 
बाल होने की अनुभूति से सगर्व मुस्कुराया
कुछ सोचा
कुछ सोचने का अभिनय भी किया
दिल और दिमाग के संगम पर
होकर खड़ा सवाल किया
तो त्वरित जबाब पाया -
पंत के उर की कसक
निराला की 'मैं' शैली
दिनकर की व्यथा
महादेवी का रुदन
प्रेमचंद का माधव
प्रसाद का मनु
और न जाने कितनों को
लोगों ने मनोरंजन का सामान
बना दिया 
संता - बंता को समानान्तर उपजा दिया
फिर तूँ किस खेत की मूली है
शक्ल सूरत रुआब और आब से भी मामूली है
तुम्हारी व्यथा को कौन सुनता है!
सुनेगा भी क्यों!
बहुसंख्यकों की भीड़ 
भूख प्यास और असुरक्षा से प्रताड़ित 
झुग्गी झोपड़ी और बिखरते नीड़ को
अनायास या भाग्यवश
या कि हालात से विवश को
ग़म गलत करने हेतु
आँखों का अंजन चाहिए
मुँह का मंजन चाहिए
सस्ता और सर्वसुलभ
मनोरंजन चाहिए।


 


कवि परिचय-


डॉ अवधेश कुमार अवध
पिता का नाम- स्व. शिवकुमार सिंह
जन्मतिथि- 15/01/1974
शिक्षा- परास्नातक एवं प्रशिक्षित स्नातक
कार्य क्षेत्र - अभियंता
रुचि- गद्य व पद्य की समस्त प्रचलित विधाओं में सृजन व विविध पत्र पत्रिकाओं में नियमित प्रकाशन
सम्मान-
1) विद्यावाचस्पति (मानद डॉक्टरेट 2018)
2) शतकवीर सम्मान (मगसम 2019)
3) खरैतीलाल सम्मान (सृजन सरिता 2018)
4) सर्व हिन्दुस्तानी परिषद असम (2019)
5) सोसल मीडिया द्वारा दर्जनों अनमोल सम्मान
उद्देश्य- हिंदी को लोकप्रिय राष्ट्रभाषा बनाना


 


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