मौत से इश्क नहीं, और तू जीने नहीं देता है (कविता) - अजय "आवारा"

मौत से इश्क नहीं, और तू जीने नहीं देता है



अजय "आवारा", बेंगलुरू (कर्नाटक) भारत


*************************************************


न जानें, यह जमाना, क्यों साजिश करता है,
हर बार, दर्द पर ही क्यों ये हाथ रख देता है। 


क्यों देखेगा वो, तेरी पीड़ और आंसू भी तेरे,
यह तो दस्तूर है, अपना ही तो जख्म देता है।


क्यों शिकायत करूं, अब तुझसे ऐ जिन्दगी,
तुझे वास्ता नहीं, जमाना जीने नहीं देता है।


सोचता हूं, गिरवी रख दूं, ख्वाहिशें अपनी,
मोल है नहीं, और बे मोल कोई नहीं देता है।


क्यों करूं मैं शिकायत, तेरी वफ़ा से आज,
मौत से इश्क नहीं, और तू जीने नहीं देता है।


नहीं मिले, तुझे रिझाने के बहाने आखिर तक,
तू ख़फा है,और कोई मनाने भी नहीं देता  है।


रख दे, शिकायतों का पुलिंदा, मेरे ही सर पर,
आखिर, बेवफा को ही,ये हक, ज़माना देता है।


 


कवि परिचय-


अजय यादव "आवारा"

कार्य क्षेत्र - व्यवसायी


मूल रुप से छंद मुक्त आधुनिक काव्य लेखन एवं अधिकतर साहित्यिक संस्थाओं से जुड़े होने के साथ, साहित्यिक गतिविधियों में पूर्ण रुप से सक्रिय


रुचि- गद्य व पद्य की समस्त प्रचलित विधाओं में सृजन व विविध पत्र पत्रिकाओं में नियमित प्रकाशन

उद्देश्य- हिंदी को लोकप्रिय राष्ट्रभाषा बनाना


 


हिंदी को समर्पित समस्त प्रकार की खबरों, कार्यक्रमों तथा मिलने वाले सम्मानों की रिपोर्ट/फोटो/वीडियो हमें pragyasahityahindisamachar@gmail.com अथवा व्हाट्सएप नंबर 09027932065 पर भेजें।


'नि:शुल्क प्राज्ञ कविता प्रचार योजना' के अंतर्गत आप भी अपनी मौलिक कविताएं हमें pragyasahityahindi@gmail.com अथवा व्हाट्सएप नंबर 09027932065 पर भेजें।


'नि:शुल्क प्राज्ञ लेख प्रचार योजना' के अंतर्गत आप भी अपने लेख भेजने हेतु 09027932065 पर संपर्क करें।


प्राज्ञ साहित्य की प्रति डाक से प्राप्त करने व वार्षिक सदस्यता प्राप्त करने के लिये 09027932065 पर संपर्क कर हमारा सहयोग करें।


'प्राज्ञ साहित्य' परिवार का हिस्सा बनने के लिए 09027932065 पर संपर्क करें।