मेरा गाँव (कविता)

मेरा गाँव



मुकेश कुमार “ऋषि वर्मा”, आगरा (उ.प्र.) भारत 


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वृक्षों और लताओं से घिरा हुआ 

पीपल वाली ठंडी छाँव देता मेरा गाँव 

मृदुल नीर से भरा सरोवर लेता हिलोर 

कोयल की कूक करती मन विभोर 

 

अमृतरुपी जल से भरी कल-कल करती सरिता 

खुले नील गगन के नीचे मोर - पपीहा नाचें 

देर शाम को चौपालों पर जिंदा होते आल्हा - ऊदल 

मेरे गाँव में अब भी ईमान-धर्म सब हैं प्रबल 

 

कृषक खेत में कर परिश्रम अन्न उगाते 

स्वयं भूखे रहकर निज राष्ट्र की भूख मिटाते 

कर भरोसा किस्मत पर, कर्मपथ पर चलते जाते 

विघ्न-बाधाओं से लड़कर शीश उठाकर जीते जाते 

 

रहकर फकीरों से, काम भूपों के करते हैं 

गाँवों में स्वार्थी आदमी नहीं, नेकदिल इंसान रहते हैं 

प्रभु से प्रार्थना मेरी! मेरे गाँव को शहर की नजर ना लगे 

अपने - पराये सब यहाँ मिलकर रहते हैं सगे 

 


कवि परिचय-


मुकेश कुमार “ऋषि वर्मा”
शिक्षा - एम. ए. (समाज शास्त्र),  डी. सी. ए. (कम्प्यूटर),  आर्य भूषण एवं आर्य रत्न, एफ. एच. आर. (मानवाधिकार), संस्कृत प्रवेश (संस्कृत भाषा) आई. जी. डी. बॉम्बे,  
प्रकाशन - आजादी को खोना ना, संघर्ष पथ, काव्य दीप (काव्य पुस्तिकाएं)  
कई पुस्तकों के मुखपृष्ट, पत्र-पत्रिकाओं व संकलनों में चित्र प्रकाशित | कई फिल्मों, लघुफिल्मों, अलबमों में अभिनय |
विशेष - कई स्वलिखित लघुकथाओं पर शॉर्ट फिल्मों का निर्माण 
संचालक - ऋषि वैदिक साहित्य पुस्तकालय 
अध्यक्ष - बृजलोक साहित्य-कला-संस्कृति अकादमी 


उद्देश्य- हिंदी को लोकप्रिय राष्ट्रभाषा बनाना। 


 


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