न पूछ, तेरी वफ़ा कैसे लिखता हूँ
अजय "आवारा", बेंगलुरू (कर्नाटक) भारत
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न पूछ, तेरी वफ़ा कैसे लिखता हूँ,
रात रोती है, और आंसू लिखता हूँ।
सिसकती है चांदनी, जब रात भर,
तब कहीं मैं, तेरी याद लिखता हूँ।
तड़प उठते हैं, सितारे इस तन्हाई में,
तब, तेरी जुदाई का पल लिखता हूँ।
रहने दे गुलों को, गुम सुम ही आज,
इस तरह, मैं तेरी उदासी लिखता हूँ।
रात गुजर गई, ताकते तेरी तस्वीर को,
इस तरह, मैं तेरा इंतज़ार लिखता हूँ।
ख़ामोशी रोई थी, तेरी दास्तां सुन कर,
कुछ यूं मैं, वो गुज़रे पल लिखता हूँ।
रहने दे ये तड़प, थोड़ी और देर तक,
इस दर्द से, तेरी मोहब्बत लिखता हूँ।
कवि परिचय-
अजय यादव "आवारा"
कार्य क्षेत्र - व्यवसायी
मूल रुप से छंद मुक्त आधुनिक काव्य लेखन एवं अधिकतर साहित्यिक संस्थाओं से जुड़े होने के साथ, साहित्यिक गतिविधियों में पूर्ण रुप से सक्रिय
रुचि- गद्य व पद्य की समस्त प्रचलित विधाओं में सृजन व विविध पत्र पत्रिकाओं में नियमित प्रकाशन
उद्देश्य- हिंदी को लोकप्रिय राष्ट्रभाषा बनाना
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