वटसावित्री पूजा (कविता) - दयानन्द त्रिपाठी व्याकुल

वटसावित्री पूजा  



दयानन्द त्रिपाठी व्याकुल, महराजगंज (उ.प्र.) भारत  


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वट वृक्षों की पूजा पतियों का सम्मान,
रहे निर्जला सुहागिनें लेकर ये विधान।
गाँवों से शहरों तक है जीवन का मान,
सुहागिनें करें दिर्घायु हेतु वट पूजन विधान।


हम सबके संस्कारों में वट हैं ईश समान,
करें कामना सुहागिनें पति रहें सत्यवान।
रीति रिवाजों से है जीवन मूल्य आधार,
वट पेड़ नहीं ब्रम्हा बिष्णु महेश का है स्थान।


वट वृक्षों की छाया पथिकों को देती आराम,
कड़ी धूपहो जली धरा हो ठंडी पवन चलाय।
वट पर सोच ये प्राणी ज्ञान समुंदर पर बल दे,
वसुधैव - कुटुम्बकम की  राहों का है सहाय।


ऐसे  ही  नहीं  होती  वट  वृक्षों  की  पूजा,
अमृत जीवनधारा के रहे होंगे कारण दूजा
व्याकुल बंधीं पत्नियां सातजन्मों के फेरों से,
वट से मांगें पत्नियां अमर रहे वर करूँ पूजा।


 


कवि परिचय-


दयानन्द त्रिपाठी व्याकुल
शिक्षा -स्नातक, बीटीसी
कार्य क्षेत्र - अध्यापन


सम्मान-
श्रेष्ठ साहित्य शिल्पी सम्मान


ग्रीन आइडल अवार्ड


अक्षय काव्य सम्मान


श्रीमती फूलवती देवी सम्मान


हरिवंश राय बच्चन सम्मान


मातृ दिवस विशेष सम्मान


मदर्स प्राइड अवार्ड


रुचि- गद्य व पद्य की समस्त प्रचलित विधाओं में सृजन व विविध पत्र पत्रिकाओं में नियमित प्रकाशन


उद्देश्य- हिंदी को लोकप्रिय राष्ट्रभाषा बनाना


 


 


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