दीपक "परमार्थ", आगरा (उ.प्र.) भारत
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साधक बन दिन-रात शरीर तपाता,
जुनून में क्रिकेट कैरियर को भी त्याग जाता,
छुटपुट सफलताओं पर कैसे रुक जाता,
हर रोल में जो खुद को ढाल पाता,
यूं ही नहीं कोई इरफान बन जाता।
मंजिल पाने को घर वालों से झूठ बोल पाता,
देश विदेश में अभिनय का लोहा मनवाता,
हर किरदार को पूर्ण ईमानदारी से निभाता,
बिना विरासत अपने दम अनेक अवार्ड लाता,
यूं ही नहीं कोई इरफान बन जाता।
कट्टरपंथी मान्यताओं के विरुद्ध आवाज उठाता,
आवाज उठाने से अनेक नुकसान भी पाता,
नुकसान के बावजूद भी सत्य बात पर अड़ जाता,
सत्य बात से ही कट्टरपंथी विचारधाराओं को हराता,
यूं ही नहीं कोई इरफान बन जाता।
कैंसर सा शत्रु भी जिसके जज्बे को नहीं रोक पाता,
मां की सेवा न करने का अफसोस भी ताउम्र रह जाता,
मां की सेवा को दुनिया से कोई तो बहाना बनाता,
जन्नत में भी मां की सेवा को चला जाता,
यूं ही नहीं कोई इरफान बन जाता।
परिचय
दीपक "परमार्थ"
शिक्षा- एम.कॉम., एम.एड., नेट, एल.एल.बी.
कार्यक्षेत्र- सहायक विकास अधिकारी सहकारिता, आगरा (पी.सी.एस. अवर)
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