अकेलापन मानव की नियति है (लेख) - सुशीला जोशी 'विद्योत्तमा'
अकेलापन मानव की नियति है।

 


सुशीला जोशी 'विद्योत्त्मा', मुजफ्फरनगर (उ.प्र.) भारत


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अकेलेपन से दूर रहने के लिये परिवार व समाज बनते हैं किन्तु क्या कभी अकेलापन दूर हो पाया ? जानवरों के बच्चे जन्म के तुरन्त  बाद ही खड़े हो चल पड़ते हैं अकेले अपनी जीवन यात्रा पर। किन्तु आदमी के  बच्चे का अकेलापन 25 साल तक भी दूर नहीं होता। धरती पर पैर रखने के लिये उसे पूरे साल माँ की गोद को आवश्यकता पड़ती है और अपने पैरों पर स्वतन्त्र खड़ा रहने के लिए कम से कम 25 वर्ष। गृहस्थ के बीच का भाग ही चहल-पहल वाला रहता है अन्यथा पूर्व भाग और अंतिम भाग पर अकेलेपन का ही वर्चस्व रहता है। गृहस्थ के पूर्व भी अकेलापन इठलाता था और कर्तव्यों के वहन के बाद तो वह भयावह बन डराने लगता है। जीवन के अवसान में उतनी ही विवशता जितनी बाल्यकाल में थी।

अकेलापन डराता है मगर खुद को  जानने का अवसर भी देता है। अकेलापन ही तो है जो मौन को जीना सिखाता है। रुग्णावस्था में अपने काम स्वयं करना सिखाता है। अति गम्भीर स्थिति में साहस और धैर्य से परिचित कराता है। जगत के रिश्तों -नातों की गहराई में उतरना सिखाता है। अपनो की परिभाषा का परिमार्जन करना सिखाता है। आत्मा में रमना सिखाता है। सृजन को प्रेरित करता है और मन की प्यास रहित करना भी।

अकेला होना मनुष्य का स्वभाव है, उसकी नियति है अतः भीतर की बेचैनी से छुटकारा पाने के लिए अकेलापन आवश्यक है। यह मानव के अन्तस् की वह प्रक्रिया है या वह अवस्था है जो उसके स्वभाव का निर्माण करती है इसीलिए अकेलापन मिटाये नही मिटता। चाहे जितना भी प्रयास किया जाय अकेलापन परिवार या समाज होते हुए भी मानव के भीतर अडिग हो कर खड़ा रहता है। पल पल उसका अहसास कराता रहता है कभी भीड़ में तो कभी घर या जंगल मे किसी कोने में बैठा कर। व्यस्तता में डूबे रहने पर भी एकांत के क्षणों में अकेलापन अपना वर्चस्व बनाये रखता है।

ध्यानावस्था अकेलेपन में फिर से खोये रहने की अवस्था है। घर, परिवार, मित्रो की बैसाखी को परे रख अपने निजी स्वभाव में डूबना ही तो है ध्यानावस्था। संसार के कर बन्धन को ज्यो का त्यों छोड़ अपने स्वभाव में रमना ही ध्यान है। जिस दिन अकेलेपन को आत्मसात करने की ऊर्जा पैदा हो जाएगी उसी दिन बुद्धत्व की प्राप्ति हो जाएगी।


 



 


परिचय-


सुशीला जोशी 'विद्योत्त्मा'


शिक्षा- एम.ए.(हिंदी, अंग्रेजी) बी.एड., संगीतप्रभाकर - सितार, कथक ,गायन ,तबला (प्रयाग संगीत समिति -, इलाहाबाद )

प्रकाशित सहित्य - 12 पुस्तकें, 50 साझा सँग्रह,10 पत्रिकाओं मे रचनाएँ 

सम्मान-

● कर्नाटक कर राज्यपाल श्री डी०,एन० तिवारी द्वारा सम्मानित 2003 

● उत्तर प्रदेश हिंदी संस्थान से अज्ञेय पुरस्कार 2009 

● मलाला सम्मान 20014

अर्णव कलश एसोशिएशन द्वारा -- 28 सम्मान 

18 संस्थाओ द्वारा सम्मान प्रशस्ति पत्र । 

उद्देश्य - हिन्दी भाषा का प्रशासकीय स्तर पर प्रथम कार्यालयी भाषा बनाने हेतु प्रचार प्रसार l


 


 


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