अपने अपने फुर के घेरे (कविता) - प्रयागराज से नवीन

अपने अपने फुर के घेरे



भूपेंद्र कुमार त्रिपाठी 'नवीन', प्रयागराज (उ.प्र.) भारत


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१. भूमंडलीय चरित्र...
अक्सर वह नहीं कह पाता
अपने अंदर की व्यथा
पसीजता रहता है सारा दिन
अपने अकेलेपन में
और...मथता रहता है
लोगों के भूमंडलीय चरित्र।


२. समय..
समय- विछोह में भी
प्रतिज्ञा रत रहता है
अपनी सूइयों में
थामें रखने के लिए
वसुंधरा पर अंकित
सम्बंध सूक्त
क्या हम ऐसा 
कर पाते हैं।


३. जीवन संदेश..
प्रत्येक जीवन प्रत्याशा
अपनी आवश्यकता के
विषय का आविष्कार
कर लेती है..
एक उपारांत जीवन के
सर्वकालिक जीवन
संदेश को पढ़ने के लिए।
जिंदगी की खुरदरी रगड़
में घिसकर.... और
मृत्यु की आंख में
झांक कर......भी
अपने भीतर खरखराते
नि:शेष सूखे बीज से
मूल्यों का पुनर्वास
करना चाहती है।


 


कवि परिचय-


भूपेंद्र कुमार त्रिपाठी 'नवीन'

रुचि- गद्य व पद्य की समस्त प्रचलित विधाओं में सृजन व विविध पत्र पत्रिकाओं में नियमित प्रकाशन

उद्देश्य- हिंदी को लोकप्रिय राष्ट्रभाषा बनाना


 


 


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