भुखमरी और लॉकडाउन के बीच फंसा विश्व (लेख) - धर्मेंद्र जांगिड़

भुखमरी और लॉकडाउन के बीच फंसा विश्व



धर्मेंद्र जांगिड़, दिल्ली, भारत


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विश्वव्यापी कोरोनारूपी महामारी का संकट बड़ा है एवं हर आयाम पर है। कालातीत एवं अदृश्य शत्रु से बचाव के लिए विश्वव्यापी स्तर पर सभी देश, विभिन्न संस्थाएं, एनजीओ आदि प्रयासरत हैं। महामारी के सामाजिक संक्रमण को रोकने के लिए अधिकांश देशों ने लॉकडाउन जैसे कदम उठाए हैं। जिससे वैश्विक स्तर पर आर्थिक संकट, भूखमरी जैसी समस्याएं उत्पन्न हो गयी हैं। अर्थव्यवस्था और लॉकडाउन के मध्य का यह धर्मसंकट सबसे अधिक गरीबों को मार रहा है। लॉकडाउन के चलते मजदूरों, किसानों, पशुपालकों, मछुआरों, कूड़ा बीनने वालों और निराश्रितों के समक्ष बड़ी चुनौती है इनमें अनेक भूखमरी के शिकार हुए हैं क्योंकि आजीविका छिन गयी है। जिससे एक और अभूतपूर्व मानवीय संकट पैदा हो गया है क्योंकि कम बचत वाले लाखों परिवारों के पास आने वाले हफ्तों में भोजन और अन्य बुनियादी आवश्यकताओं को जुटाने का रास्ता नहीं होगा।


जैसे देश में बेरोजगारी के आंकड़े नियमित रूप से एकत्रित करने वाली संस्था सेंटर फॉर मॉनिटरिंग ऑफ इंडियन इकोनामी के अनुसार कोरोना का कुछ असर होने से पहले फरवरी महीने तक कुल 40.4 करोड़ लोग रोजगार युक्त थे। अप्रैल के अंतिम सप्ताह में इनकी संख्या घटकर 28.1 रह गयी। यानी करीब 12 करोड रोजगार खत्म हो चुके हैं जिससे आजीविका का संकट गहराता जा रहा है। अर्थव्यवस्था के तीनों क्षेत्रों में श्रमिकों का अकाल होने लगा है। करीब 60% उद्योग योग्य श्रमिकों की अनुपलब्धता की वजह से ठप्प हैं। मजदूर चिंतित एवं डरे हुए हैं।


लॉकडाउन लगाने वाले राष्ट्रों में अब गरीब, प्रवासी श्रमिक समुचित भोजन की व्यवस्था नहीं कर पा रहे हैं। आमतौर पर कहा जाता है कि सत्ता के प्रासादों से जो चीज सबसे कम नजर आती है वह है लघु आकार की झुग्गी झोपड़ी और उसमें रहने वाला आम मजदूर। हालांकि तमाम राष्ट्र कोरोना वायरस रुपी पहेली सुलझाने में लगे हुए हैं। भोजन और अन्य बुनियादी आवश्यकताओं के लिए प्रयास कर रहे हैं परंतु गरीबों एवं प्रवासी मजदूरों के लिए कागजी कार्यवाही, मौजूदा सूचियां एवं बायोमेट्रिक बाधाएं बन रही है। मौजूदा सूचियां अपर्याप्त हैं क्योंकि जरूरतमंदों के नाम नहीं है। नगदी वितरण अधिक जटिल है गरीब प्रवासी श्रमिकों में भय का माहौल है परन्तु क्या लोकडाउन ही इसकी मूल समस्या है? कई देश जैसे अमेरिका एवं स्वीडन में कुछ राज्यों में लोकडाउन न करने का फैसला लिया क्योंकि उन्होंने महसूस किया की यह इलाज( लॉकडाउन) इस बीमारी से भी खराब था किंतु आज इन देशों की भी बड़ी आबादी कोरोना से ग्रसित है। 


अब विभिन्न राष्ट्रों के मध्य बड़ी चुनौती यह है कि अर्थव्यवस्था को कैसे पटरी पर लाया जाए? कुछ राष्ट्रों के राजनीतिक वर्ग की चेतना के कारण आज वे संभले हुए हैं, कुछ राष्ट्रों के राजनीतिक वर्ग की संवेदन- शून्यता के कारण आज उनकी स्थिति जगजाहिर है। कुछ राष्ट्र अंतर्राष्ट्रीय दंगल में पांव रख रहे हैं- शक्तिशाली राष्ट्र एक दूसरे पर वाग्बाण छोड़कर वाग्युद्ध कर रहे हैं किंतु अर्थव्यवस्था को पटरी पर लाने की चुनौती संपूर्ण विश्व के सामने हैं। इसके सटीक उपचार हेत रोजगार सृजन के लिए राष्ट्रीय स्तर पर राष्ट्रीय-नवनिर्माण योजनाएं चलाई जानी चाहिए। जिससे उत्पादन और खासकर कृषि उत्पादन को रफ्तार दी जा सके। भारत जैसे राष्ट्र में ग्रामीण स्तर पर चल रही मनरेगा योजना जैसे विकल्प शहरी क्षेत्रों में भी खोले जाने चाहिए। सरकारों को जमीनी स्तर से सोचने की आवश्यकता है साथ ही साथ जनता को भी नैतिक बुद्धि से सोचते हुए राज धर्म एवं व्यक्तिगत धर्म अर्थात लोकडाउन और व्यक्तिगत जीवन के मध्य मार्ग को अपनाना होगा। 


संकट अभी गहरा है विश्व के सामने असली आयाम तो आर्थिक और सामाजिक तौर पर सामने आने हैं गरीबों को राशन, उद्योगों का पहिया चलाने के लिए आर्थिक मदद और समाज की निराशा को आशा में तब्दील करना सभी राष्ट्रो के सामने मुख्य चुनौती है। उत्पादन-शून्यता और सामाजिक अशांति के चलते सप्लाई चैन के स्थानीय दृष्टिकोण पर रणनीतिक तौर पर पुनर्विचार करना महत्वपूर्ण है ताकि आपात स्थिति से बचाव व आत्मनिर्भरता बरकरार रहे। नैतिक तौर पर सोचें तो संपूर्ण समाज को मानवता को केंद्र में रखकर एक टिकाऊ तरीके के बारे में सोचना चाहिए। मानव केंद्रित समाज दुबारा से बनाने के लिए नौकरशाही के सरलीकरण व प्रभावी स्वास्थ्य सिस्टम के साथ ही मानवीय जरूरतों को केंद्र में होना चाहिए न कि बेलगाम उपभोक्तावाद को हालांकी लोकडाउन से बाहर निकलने की रणनीति अत्यंत जटिल है इसके लिए मजबूत इच्छाशक्ति व कुटिल रणनीति की आवश्यकता है।


 


परिचय-


धर्मेंद्र जांगिड़


कार्य क्षेत्र - राजनीतिक विज्ञान विद्यार्थी किरोड़ीमल कॉलेज, दिल्ली विश्वविद्यालय


रुचि- गद्य की प्रचलित विधाओं में लेखन

उद्देश्य- हिंदी को लोकप्रिय राष्ट्रभाषा बनाना


 


 


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