दोहा
वृंदावन राय सरल, सागर (म.प्र.) भारत
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दोहा...लोलुपता
लोलुपता अभिशाप है,हर मानव को आज।।
जो इसमें आकर फसा,उस पर हँसे समाज।।
दोहा..नैतिकता
नैतिकता इंसान को, करती फूल समान।।
सुख देती जो गै़र को,देकर अपनी जान।।
दोहा..मौलिकता
मौलिकता का आजकल, संकट है हरओर।।
नकल चोर उत्कर्ष पर,नीचे है सिरमौर।।
दोहा..मादकता
होंठों पर टेसू खिले,महुआ महकें नैन।।
मादकता घायल करे,कटे नहीं ये रैन।।
दोहा..चंचलता
चंचलता का दौर है,चंचल हैं जो लोग।।
उनके सिर पर ताज है,ऐसे हैं संयोग।।
कवि परिचय-
वृंदावन राय सरल
कार्यक्षत्र- सेवा निवृत्त सिविल अभियंता
रुचि- पद्य की समस्त प्रचलित विधाओं में सृजन।
उद्देश्य- हिंदी को लोकप्रिय राष्ट्रभाषा बनाना।
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