कृष्ण एवम् राधा (यमुना के किनारे मिलन कल्पना)
आशुकवि रमेश कुमार द्विवेदी "चंचल" सुलतानपुर (उ.प्र.) भारत
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एकु समय वृजभानुलली अटी सखियन सग कालिन्दी कछारे ।।
बाग लतानु विहँसि अलियन कलियन मानो झुकि झुकि देत तिन्हैं अँकवारे।।
गुन गुन राग सुनावत भृंग अरूझे कलियन गलियन मझधारे।।
भाखत चंचल लाग वसन्त याकि आवत मोहन प्रान पियारे।।1 ।।
निरखि सखी मुसुकात सुनावत सखि मोरी आवत मोहन प्यारे ।।
बेनु बजावत गाय हँकावत राग अलापत लोचन प्यारे ।।
वदन सकुचात लली वृजभानु हुलसात हिया लखि ग्वालन सारे ।।
भाखत चंचल जोहत लोचन बाट निहार त नन्द दुलारे ।।2 ।।
सोचि मना इहै राधा जु प्यारी हीक निहारब मोहन प्यारे ।।
नयनन गायब नींद मोरी अरू मोर पुकारत बागि सकारे ।।।
स्वप्न सजावत रैन कटीअरू उलझन मा घनश्याम बिना रे ।।
भाखत चंचल बैन बजी अरू देखत सौह ऊ मोहन प्यारे ।।3।।
कवि परिचय-
रमेश कुमार द्विवेदी "चंचल" (आशुकवि)
कार्यक्षेत्र- कृषि
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