कुकर्म मैं या उमर बीतगी, अब मेरी पत राखो भगवान (भजन) - विश्व बन्धु शर्मा

कुकर्म मैं या उमर बीतगी, अब मेरी पत राखो भगवान


(हरियाणी/बांगरू बोली)



विश्व बन्धु शर्मा, रोहतक (हरियाणा) भारत


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गुण एक नहीं है मेरे अंदर, जिंदगी सै ओगण की खान।
कुकर्म मैं या उमर बीत गी, अब मेरी पत राखो भगवान।।


कोल करा था भजन करण का, मैं प्रभु तैं उल्टा हट बैठा।
गर्भ वास मैं दुख भोग्या प्रभु, पर सुख तैं पेटा भर बैठा।
अ गत सुधारण आया था मैं, पर जग झंझट मैं घिर बैठा।
मैं कैसे कहूँ भगवान तुझे, मैं माड़े कर्म भी कर बैठा।
मैं लोभ काम मैं लगा रहा, यहाँ करा नहीं तेरा ध्यान,,,,,,1


बचपन खोया खेल खि लो णे, गई जवानी त्रिया मोह मैं।
कुछ काम क्रोध मैं बीत गई, शेष बची वा तृष्णा मोह मैं।
अब रोग शोक नै घेर लिया, जीवन जाता छोह छोह मैं।
यो नाम लिया न एक दिन भी, रहा घिरा जगत के मोह मैं।
आ डा आडा चला अकड़ कें, इत मनै खूब दिखाई शान,,,,,,2


यो दुख चिंता मैं दिन बीतै, मैं चक्कर के मा पड़ा रहा।
भूल म्ह सोऊँ जीवन खोऊँ, फिर रोता मैं दिन रात रहा।
ब्याह छुछक व भात का चक्कर, कुणबे के मांह फँसा रहा।
काम क्रोध की कोली भरली, मैं लोभ खडे मैं पड़ा रहा।
जीभ चटोरी करता चोरी, प्रभु कदे किया नहीं पुन दान,,,,,3


कर हथ फेरी माया मेरी, मैं मोह के दलदल मैं धंस ग्या।
न हया शर्म दिया त्याग धर्म, मैं कुकर्म के मांह फंस ग्या।
यो पाप कमाया रोज रोज, फिर मैं धर्म कर्म तैं हट ग्या।
मुंशी राम दिया अहम तोड़, फेर ज्ञान का दीपक चस ग्या।
बन्धु नरक मिलो चाहे खोड़, बचा ना क्यां हे का अभिमान,,,,,4


 


कवि परिचय-


विश्व बन्धु शर्मा
कार्य क्षेत्र - सेवा निवृत्त प्रोफेसर (33वर्षवैश्य कॉलेज रोहतक में तथा साढ़े तीन साल बाबा मस्त नाथ विश्व विद्यालय में)


रुचि- गद्य व पद्य की समस्त प्रचलित विधाओं में सृजन व विविध पत्र पत्रिकाओं में नियमित प्रकाशन

उद्देश्य- हिंदी को लोकप्रिय राष्ट्रभाषा बनाना


 


 


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