लड़ेंगे हम न अपने भाइयों से (ग़ज़ल) - डॉ जियाउर रहमान जाफ़री

लड़ेंगे हम न अपने भाइयों से



डॉ जियाउर रहमान जाफ़री, नालंदा (बिहार) भारत 


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करेंगे  वार जब  दंगाइयों  से 
लड़ेंगे हम न अपने भाइयों से 


हमारी सिर्फ ही तो जान बचती 
अगर हम कूद जाते खाइयों से 


फिसलते ही ज़मीं पर आ गये हैं 
बहुत रिश्ते  रहे  ऊंचाइयों    से 


ज़रा सी सिर्फ दौलत के लिए ही 
जिये हैं उम्र भर  रुस्वाइयों  से 


हुए हैं मिल के इक  हिंदुस्तानी 
लड़े हैं जब कभी  बलवाइयों से 


कहां तक बैठ कर चर्चे करें हम 
निकालें भी क़दम अँगनाइयों से 


महज़ सिक्के सियासत फेक देगी 
करेगी प्यार कब  गहराइयों  से 


नहीं निकली ग़ज़ल है आजतक भी 
मुसलसल जिस्म की रानाइयों से 


 



 

 


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