मां का आंगन सुहाना
उमाकान्त "प्राज्ञहंस", कासगंज (उ0प्र0) भारत
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मधु की जैसे ही आंख खुली वह हड़बड़ा कर उठी उसने सोचा कि आज अलार्म क्यों नहीं बजा। लेकिन जैसे ही वह खड़ी हुई उसे एहसास हुआ कि वह इतनी थक गयी थी कि उसे पता ही नहीं चला कि वह आज अपने फ्लैट में नहीं, अपने मायके में है। वह ठिठक गयी और सोचने लगी- 'मां तो है ही ऐसी, कभी नहीं जगाती। देर तक सोने की आदत डाल दी थी। अब जाकर पता चला है कि जल्दी उठना क्या होता है।' खुद से यह कहते हुए वह अपनी मां की रसोई की ओर बढ़ी। वहां मधु की मां आटा गूंथ रही थी। अपनी लाडली को आते देख बोली- 'उठ गयी, मैंने जानबूझकर नहीं उठाया, थक गयी होगी। वहां जल्दी उठना होता होगा। मां की तरफ देखते हुए मधु ने कहा- 'हां मां वहां बहुत जल्दी उठना पड़ता है। वहां यहां जैसा जीवन कहां, क्या बनाना है, कैसे बनाना है, रसोई में स्नान करके ही घुसना है। न जाने कितने नियम बना रखे हैं मेरी सासू मां ने।' यह कहते हुए मधु रसोई से घर के दरवाजे की तरफ देखते हुए बोली- 'और यहां तुम हो कुछ काम ही नहीं करने देती' मधु की मां ने तवे को चूल्हे पर रखकर गैस को जलाते हुए कहा- 'अरे पगली, अब तू चली ही गयी है ससुराल। खुद ही समझ जाएगी ससुराल की जिंदगी और जिम्मेदारियों के बारे में।' मधु की मां ने एक क्षण के लिए रुककर लंबी सांस लेकर कहा - 'मायके का सुख तो सपना बनकर रह जाता है। बेटी कितनी भी सुखी क्यों न हो। ससुराल कभी उसे बेटी का दर्जा नहीं दे पाती।' मधु ने अपनी मां के कंधे पर धीरे से हाथ रखा और कहा- 'मां तुम्हारी इस बात को अब मैं समझ सकती हूं और यह भी अच्छे से जान गयी हूं कि सच में 'मां का आंगन ही सुहाना' होता है।' परंतु मधु की मां ने तेज आवाज में कहा ऐसे ही बातें करती रहेगी, चल नहा ले खाना तैयार है।
कवि परिचय-
उमा कान्त "प्राज्ञहंस"
●शिक्षा- परास्नातक, नेट एवं एम0फिल0, पी0एच0डी0(कार्यरत)
●कार्यक्षत्र- सहायक आचार्य, स्वामी केशवानन्द महाविद्यालय, लक्ष्मणगढ़, अलवर (राजस्थान) भारत
●संपादक व प्रकाशक- 'प्राज्ञ साहित्य' (अंतरराष्ट्रीय संदर्भित त्रैमासिक हिंदी शोध एवं प्रचार पत्र)
●प्रकाशक- 'प्राज्ञ साहित्य' (प्रकाशन)
●अध्यक्ष- परम भूप मणि वन्य विकास संगठन
●पूर्व संचालक- अभिमन्यु दल (स्काउट)
●ग्यारह अंतरराष्ट्रीय सम्मेलनों/संगोष्ठियों व आठ राष्ट्रीय सम्मेलनों/संगोष्ठियों में पत्रवाचन।
●रक्षा अनुसंधान प्रयोगशाला, तेजपुर, असम (रक्षा अनुसंधान एवं विकास संगठन, रक्षा मंत्रालय, भारत सरकार) द्वारा आयोजित एक दिवसीय हिंदी कार्यशाला के मुख्य वक्ता एवं एकल संचालक के रूप में वैज्ञानिकों, अधिकारियों, सीनियर रिसर्च फैलोशिप एवं जूनियर रिसर्च फैलोशिप के समक्ष एकल संचालन।
●विभिन्न सामाजिक कार्यों में सराहनीय योगदान हेतु डब्ल्यूएचओ-यूनिसेफ, विश्व बैंक, डीआरडीओ, गूगल सहित अनेकों संस्थाओं द्वारा सम्मान व प्रमाण पत्र।
●रुचि- गद्य व पद्य की समस्त प्रचलित विधाओं में सृजन।
●उद्देश्य- हिंदी को लोकप्रिय राष्ट्रभाषा बनाना।
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