प्रवासी  मजदूर (सवैया छन्द) - आशुकवि रमेश कुमार द्विवेदी "चंचल"

प्रवासी  मजदूर



आशुकवि रमेश कुमार द्विवेदी "चंचल" सुलतानपुर (उ.प्र.) भारत 


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रोटी रोजी के खातिन दूर गयो जब आई विपत्ति कुटुम्ब घनेरी ।।                  


हौं नहि चाह रही कतौ जानेपर घरवाली  परोसी ऊकेरी ।।                                


एकौ चली नहि जब हमरी ममता औ माया करै अठ खेरी ।।                      


च़चल काव कही परदेश गये मुल धाई कोरोना   .बकै री।।1 ।।                       


 


तीनिन माह रहा परदेस जौ वासन वस्त्र ठेकाना मिला ।।                               


पगार मिली औ भया खुशहाल तौ फोन मिलाय के हाल गिला।।                     


चहकी घरवाली तू खाया पिया लरिकन कै ख्याल विचार सिला।।                     


मुल चंचल काव कही विधिना ई कोरोना तो हाल बेहाल  बिला।।2 ।।         


 


मोटर गाडी़  तौ बन्द भयीं निकरब घरबार मोहाल भवा ।।                     


 दुकान बाजार  ऊ बन्द परी रोटिय ऊ मिलब दुश्वार भवा।।                         


भूखा रहा दुई चार दिना  फिर झोरा तयार औ भाग दवा ।।                         


भाखत चंचल मंजिल दूर  सवारी टरक  हौं फाँद लवा ।।3 ।। 


                        


टरक वाले के गोडे़ औ हाथे परिन चला घर ते हौं पाई चुकाउब ।।                   


विधाता बढा़येगा पूत तोरेऔ होवै सपूत फरियाद लगाऊब ।।                           


 भलमानुस हे बैठाय लियाअगिले हौं बेरी जु़रूर  चुकाऊब।।                     


भाखत चंचल ऊहौ गरीब बिठाया हमें  हौं गाँव अँटाऊब ।। 4 ।।                   


 


कवि परिचय-


रमेश कुमार द्विवेदी "चंचल" (आशुकवि)


कार्यक्षेत्र- कृषि 


 


 


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