वह लड़की
केशव चन्द्र शुक्ल, गोरखपुर (उ.प्र.) भारत
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वह लड़की जो
घर में अक्सर
खुश रहती थी सबसे ज्यादा
सबसे पहले जग जाती थी
सूरज से ले लेकर खुशियां
सदा बाँटती थी घर भर को
वह नन्हीं सी प्यारी लड़की
गुमसुम-गुमसुम गुमसुम क्यों है?
वह लड़की जो
घर भर के जगने से पहले
घर आँगन सबकुछ बुहार कर
नित चिड़ियों सी फुदक-फुदक कर
चौका बरतन सबकुछ करके
तिनके कण्डे सब बटोर कर
चौके में ला रख देती थी
वह नन्हीं सी प्यारी लड़की
गुमसुम-गुमसुम गुमसुम क्यों है?
वह लड़की जो
नित परियों सी घूम टहल कर
बड़का दादा-बड़की माई
काका-काकी,मामा-मामी
फूआ-फुफ्फा,नाना- नानी
सबका टहल बजा देती थी
भइया की घुड़की को भी जो
हँस-हँस करके सह लेती थी
वह नन्हीं सी प्यारी लड़की
गुमसुम-गुमसुम गुमसुम क्यों है?
वह लड़की जो
दादा जी के पाँव दबाते
दिल टटोल कर मन की बातें
खुशी-खुशी कहला लेती थी
माँ को भी समझा लेती थी
भइया के हिस्से की मेहनत
समय बचाकर कर लेती थी
बाबू को बहला फुसलाकर
पढ़ना लिखना सिखलाती थी
वह नन्हीं सी प्यारी लड़की
गुमसुम-गुमसुम गुमसुम क्यों है?
वह लड़की जो
घर भर के सारे कामों को
शान्तभाव से निपटा करके
अपना हिस्सा पढ़ लिख कर के
बाबू का भी लिख देती थी
डाँट न जाए उसका बाबू
वह पहले ही रो देती थी
वह नन्हीं सी प्यारी लड़की
गुमसुम-गुमसुम गुमसुम क्यों है?
वह लड़की जो
बथुआ सरसो साग खोटकर
कई जून सलटा देती थी
और सभी को ताजा भोजन
खुद बसिया निपटा देतीथी
दादा के कुर्ते धोती पर खुद ही
कलफ लगा देती थी
लोटे में कोयला दहकाकर
प्रेस का काम चला देती थी
घर की लक्ष्मी के सारे गुण
घर भर को दिखला देती थी
वह नन्हीं सी प्यारी लड़की
गुमसुम-गुमसुम, गुमसुम क्यों है?
कवि परिचय-
केशव चन्द्र शुक्ल
कार्य क्षेत्र - कवि, लेखक एवं उद्बोधक
रुचि- गद्य व पद्य की समस्त प्रचलित विधाओं में सृजन व विविध पत्र पत्रिकाओं में नियमित प्रकाशन
उद्देश्य- हिंदी को लोकप्रिय राष्ट्रभाषा बनाना
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