विश्वास के पौधे
हिन्दी जुड़वाँ*, नई दिल्ली, भारत
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घनी आशा थी
घनी उमंग थी
विश्वास भी घनेरे थे
बड़ी सिद्दत से, हरीतिमा की छांव के लिए पेड़ लगाया था ll
कितने अरमान
कितने अह्सास
कितने सपनों
को सजाने का पानी पिलाया था ll
समर्पण था ये
जीवन को, नव
जीवन देने हेतु
अतुल्य, अटूट- विश्वास को आगे बढ़ाया था ll
गहरी खुशियों का
अटूट विश्वास का
निश्छल रिश्तों का
एक हँसता खिलता बाग लगाया था ll
आशाएं थी
घनी छांव में
भर खुशियाँ
जी भर ममता से आँचल में सो जाऊँगा ll
घना विश्वास था
भयावहता में
जब एकांत घेरे
लिपट तने को लगा गले, एकांत मिटाऊँगा ll
घना प्रेम था
जब भूख लगे
तब निश्चलता में
बैठ शाखा पर मीठे फल भी खाऊँगा ll
पर क्यों शून्यता,
तनाव, उग्रता,
व्याधि, संताप,
जड़ता, उन्माद, मरण लौट आते हैं ll
तभी, इसी भ्रम में
निश्चल प्रेम का
अनन्य विश्वास,
स्नेह मृदुलता पाने से पहले ही घोट गला, मार दिए जाते हैं ll
सत्य पथ पर
परमात्म तत्व
में पाया प्रेम भी
इसी भ्रमजाल की बलि चढ़ जाता है ll
एक भोला सा
ग्वाला, मानो
मुख केशरी के
निर्दोष धेनुओं को छोड़ चला आता है ll
ऐसे स्नेह के
पौधे, आजकल
निर्दयता में
बिन सोच समझ के माली काट
बाजारों में बेचा करते हैं ll
ऐसे प्रेम के
बीज आजकल
निर्ममता में
बिना उर्वरता के खिलने से पहले ही मरा करते हैं ll
अहम की आड़ में
रिश्ते मार दिए
वादा न निभाने वाले
दरकिनार हुए, अब दुख के घाव कहाँ भरा करते हैं ?
विश्वास के पौधे
प्रेम के बीज
स्नेह की मिट्टी
और माधुर्य और निश्चलता कहाँ से लाऊँ ?
विमुख हुई
नैसर्गिक देवी
पर्यावरण को
हरीतिमा श्यामल सुगंध से कैसे सजाऊँ ?
कवि परिचय-
शिक्षा - MA हिन्दी, B. ED., NET 8 बार
हरिराम भार्गव
शिक्षा - MA हिन्दी, B. ED., NET 8 बार JRF सहित
माता-पिता - श्रीमती गौरां देवी, श्री कालूराम भार्गव
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