आईना
डॉ मधुछन्दा चक्रवर्ती, बेंगलूरु (कर्नाटक) भारत
*************************************************
काश आईने में कोई
अपना असली चेहरा देख पाता।
सिर्फ झुर्रियाँ और मुहासें
या दाग से भरा चेहरा नहीं,
बल्कि देखता
दिखावे और नाटक का,
ईर्ष्या और क्रोध का,
अहंकार और प्रतिशोध का।
काश आईने में कोई
अपना असली चेहरा देख पाता।
अपनी असलियत देख काश,
इन्सान समझ पाता,
कितनी मासूमियत हुआ करती थी इस चेहरे पर,
कितनी खुशी हुआ करती थी इन आँखों पर,
कितनी मुस्कुराहट हुआ करती थी होठों पर,
मगर दूसरों से आगे बढ़ने की चाह में,
कामियाबी की खबरों से उपजी डाह में,
क्या न कर गुज़रा वो,
बिगाड़ गया अपना चेहरा वो।
काश आईना उन्हीं को
दूसरा चेहरा भी दिखाता।
मुजबूरी और बेबसी का,
दुख और अपमान का,
मेहनत और ईमानदारी का,
संतोष और आत्मसम्मान का,
सच्चाई और सद्भावना का
काश आईने में देख
इन्सान समझ पाता
वक्त है अब सम्भल जाने का,
वक्त है अब नकली चेहरे उतारने का।
परिचय-
जन्म-23 अप्रैल 1983
जन्मस्थान– मणिपुर इम्फाल
शिक्षा– एम. ए (हिन्दी), पी.एच.डी
कार्यक्षेत्र- सहायक प्रोफेसर, हिन्दी विभाग, माउंट कार्मल कॉलेज स्वायत्त, बैंगलुरु
कहानी- बुलबुला, फैसला(समनव्य पूर्वोत्तर पत्रिका में प्रकाशित), मासूम (साहित्य सुधा वेब पत्रिका में प्रकाशित) दावानल(विश्व हिन्दी साहित्य मॉरिशस में प्रकाशनाधीन)
कविता- बचपन से आजतक, एक दिन, भूख, रिश्तें,ऐसा क्यों होता है?, मेरे बाग के फूल, रंग जिन्दगी के, सवाल नज़रों का, हज़ारों ख्वाहिशें दिल में, न मजबूर करों किसी को, चाह कर भी, तेरे साथ -(अनुभूति, मुक्त कथन, तथा वैश्य-वसुधा तथा प्रतिध्वनि पत्रिका में प्रकाशित) विशाल गगन, हौसल( साहित्य सुधा वेब पत्रिका में प्रकाशित),
आलोचना- उपन्यासकार निराला--एक अध्ययन(पुस्तक)
33 शोधालेख विभिन्न शोध पत्रिकाओं तथा पुस्तकों में प्रकाशित।
● हिंदी को समर्पित समस्त प्रकार की खबरों, कार्यक्रमों तथा मिलने वाले सम्मानों की रिपोर्ट/फोटो/वीडियो हमें pragyasahityahindisamachar@gmail.com अथवा व्हाट्सएप नंबर 09027932065 पर भेजें।
● 'नि:शुल्क प्राज्ञ कविता प्रचार योजना' के अंतर्गत आप भी अपनी मौलिक कविताएं हमें pragyasahityahindi@gmail.com अथवा व्हाट्सएप नंबर 09027932065 पर भेजें।
● 'नि:शुल्क प्राज्ञ लेख प्रचार योजना' के अंतर्गत आप भी अपने लेख भेजने हेतु 09027932065 पर संपर्क करें।
● प्राज्ञ साहित्य की प्रति डाक से प्राप्त करने व वार्षिक सदस्यता प्राप्त करने के लिये 09027932065 पर संपर्क कर हमारा सहयोग करें।
● 'प्राज्ञ साहित्य' परिवार का हिस्सा बनने के लिए 09027932065 पर संपर्क करें।