हे पुरुष सावधान (कविता) - डॉ. सुनीता

हे पुरुष सावधान 



 


डॉ. सुनीता, दिल्ली, भारत


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हे पुरुष विचार करो तुम पुरुष हो मैं नारी हूँ
चुप हूँ न समझो बेचारी हूँ
हे पुरुष जब तुम मेरे ही प्राण लेने की सोचते हो
जब तुम मेरी ही कोख को नोचते हो
मेरे अस्तित्व को पैरों तले रोंदे हो
मन रहता है मेरा चीत्कार कर उठती है आत्मा
बेबस और लाचार रहम की दुआ मांगती हूँ
जब तुम मेरा भविष्य निधारित करते हो
जब तुम बलपूर्वक मुझे मारते और केश खींचते हो
तब मैं सोचती हूँ
हत्या कर दूं तुम्हारी कोख में ही
पर क्या करुं हे पुरुष
तुम पुरुष हो मैं नारी हूँ
कहीं मुझमें अंश तुम्हारा है
और कहीं तू भी बना सहारा है
जन्म लिया तूने मुझसे मेरे अस्तित्व में भी अंश तुम्हारा है
इसीलिए कहती हूँ तुम मुझमें हो में तुम में हूँ
मैं तुम से कम न ज्यादा ये मान लो
मुझे मिटाने की गर सोची तो मैं काली हूँ ये जान लो
मैंने पैदा सृष्टि को किया मैं हारी नहीं हूँ
बस हे पुरुष तुम पुरुष हो मैं नारी हूँ


 


परिचय-


डॉ. सुनीता
शिक्षा-डबल एम ए, बी एड, पीएचडी
जन्म-हरियाणा
निवास-दिल्ली


उद्देश्य- हिंदी को लोकप्रिय राष्ट्रभाषा बनाना


 


 


 


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