हिन्दी जुड़वाँ*, नई दिल्ली, भारत
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जीवन का सफर है लंबा
अभी बहुत दूर हमें हैं जाना
नयी डगर है नयी पगडण्डियाँ
ना राह तूने जाना ना मैंने पहचाना
आओ एक बार फिर से साथ चलते हैं
कितने ही अवरोधक राह में बिखरे
कितने ही कांटे शूल सम्मुख आएँगे
लांघ सभी को, पा लेनी है मंज़िल
न रुक, निरंतर बढ़ते जाएँगे
आओ एक बार फिर से साथ चलते हैं
कौन है परायी इस दुनिया में अपना
सब छल ही छल नजर आता है
चारों ओर घूम रहे लालसी प्राणी
हर चूक पर काट लेने को आमादा है
आओ एक बार फिर से साथ चलते हैं
छल प्रपंच के विरुद्ध, तुम हो
मेरी ढाल बन, मुझे राह दिखाना
अकेला न लाँघ पाऊँ रास्ते
इसलिए संग हाथ में हाथ मिलाना
आओ एक बार फिर से साथ चलते हैं
कौन पहुँच पाया है मंज़िल तक
अपनों का छोड़कर साथ
कौन सुखी हुआ है दुनिया में
अपनों का छोड़कर हाथ
आओ एक बार फिर से साथ चलते हैं
जीवन है समरस की धारा
जीवन में खुशियों भरा साथ प्यारा
जीवन है उमंग सरिस प्रेम की भाषा
जीवन है चितांनद की आशा
आओ एक बार फिर से साथ चलते हैं
इन्हीं खुशियों, समरस जीवन में
प्रेम स्नेह माधुर्य को पा लेने को
व्यष्टि से परे समष्टि का बोध लेकर
जीवन को जीवनांनद बना लेने को
आओ एक बार फिर से साथ चलते हैं
जीवन नहीं मिलता है दुबारा
इसी जीवन को सार्थक बना जाएं
भविष्य को उन्मुख हमसे सदा
हम मिलकर एक ऐसा राह बना जाएं
आओ एक बार फिर से साथ चलते हैं
कवि परिचय-
शिक्षा - MA हिन्दी, B. ED., NET 8 बार
हरिराम भार्गव
शिक्षा - MA हिन्दी, B. ED., NET 8 बार JRF सहित
माता-पिता - श्रीमती गौरां देवी, श्री कालूराम भार्गव
प्रकशित रचनाएं -
जलियांवाला बाग दीर्घ कविता (सह लेखन जुड़वाँ भाई हेतराम हिन्दी जुड़वाँ के साथ - खंड काव्य )
मैं हिन्दी हूँ - राष्ट्रभाषा को समर्पित महाकाव्य (सह लेखन जुड़वाँ भाई हेतराम हिन्दी जुड़वाँ के साथ - महाकाव्य )
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कविता संग्रह शीध्र प्रकाश्य -
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तुम क्यों मौन हो - (सह लेखन जुड़वाँ भाई हेतराम हिन्दी जुड़वाँ के साथ - खंड काव्य )
पत्र - पत्रिकाएँ - शोध जर्नल
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अक़्सर - (यूजीसी लिस्टेड शोध पत्रिका) आजीवन सदस्यता I
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