मुखौटा
पूजा सचिन धारगलकर, गोवा, भारत
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हर चेहरे लगे मुखौटे
चिपकाए तो कभी छिपाएँ फिरते
सामने हँसकर दिखते पीछे से वार करते
दुनिया को अपने होने का दिखवा करते
और इस दुनिया में तुम निराली
कैसे जी सकोगी अकेली
जानती हूँ तुम्हारा दर्द
पर कैसे मैं समझ सकूँगी
तुम तो बड़ी भोली हो
इस दुनिया में कैसे जी सकोगी
यह दुनिया बड़ी जालिम है
और बड़ी खुदगर्ज भी...
किसी के बढ़ते कदम इन्हें भाते नहीं
मुह से छिन के निवाला
भूखे को मारने को तैयार हैं ये
किसी नंगे को कपड़ा नहीं देता कोई
हर मनुष्य के वस्त्रहरण के लिए तैयार है ये
किसी बेसहारे को सहारा नहीं देता कोई
हर सहारे के टूटने का इंतज़ार है इन्हें
किसी को सुख नहीं देता कोई
हर खुशियों को मिटाने के लिए तैयार हैं ये
दुखों में कोई सहारा नहीं बनता
हर क्षणिक सुखों को जलाने के लिए तैयार हैं ये
हर किसी के सिसकियों के मोहताज हैं ये
किसी रिश्ते की परवाह नहीं है इन्हें
हर रिश्ता टूटने का इंतज़ार है इन्हें
डरती हूँ इसलिए
इस भरी दुनिया में अकेली तुम
कैसे जी सकोगी
क्या करोगी?
काश...
मैं तुम्हारे सारे गम हर पाती
तुम्हारे साथी बनकर
जीवन का हिस्सा बन जाती
मगर क्या करूँ
मजबूर हूँ
क्योंकि.....
मैं भी इसी जालिम दुनिया का एक हिस्सा हूँ
मैं भी इसी जालिम दुनिया का एक हिस्सा हूँ
परिचय-
पूजा सचिन धारगलकर
शिक्षा - एम.ए. (पार्वतीबाई चौगुले महाविद्यालय कला एवं विज्ञान गोगल मडगाँव गोवा)
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