रामभरोसे (लघुकथा) - विजय कुमार शर्मा

रामभरोसे 



विजय कुमार शर्मा, चण्डीगढ़, भारत 


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जैसे अयोग्य नकारा राम शर्मा को नौकरी मिली उसी प्रकार समय आने पर उसकी अयोग्यता को नकारते हुए उसकी तरक्की भी हो गयी। शर्मा जी अधिकारी हो गए थे। सफारी गाड़ी, सफारी सूट और जेब में हरा पैन लगा रहता, जो कलम का कम तलवार का काम अधिक करता। अयोग्यता ,योग्यता पर भारी पड़ने लगी थी। चापलूसों ने शर्मा जी को पढ़ लिया था। कर्मठी फाइलों के बोझ तले दबने लगे और चालबाज, घर तोहफे पहुँचाने लगे।कर्मचारियों ने वेषभूषा भी शर्मा जी के मन माफिक पहननी शुरू कर दी थी । महिला कर्मचारीवर्ग में सुबह ही उनके कक्ष में जाकर सुप्रभात कहने की होड़ लगी रहती। इत्र बिखेरती अपसराएं, शर्मा जी के वातानुकूलित कक्ष को दफ्तर की अपेक्षा पार्लर समझती। उधर शर्मा जी के अंहकार ने भी नित नई सीड़ी चढ़नी आरम्भ कर दी थी।

कर्मठी रामआसरा बेचारा काम के बोझ को हलका करने फाइलें घर ले जाता। बीमार पत्नी बिस्तर पर लेटे रहती और रामआसरा घंटों फाइलों से जूझता रहता । घण्टे-घण्टे बाद पत्नी को दवाई, खुद पकाकर बेटे को खाना परोसे। चौरासी के चक्कर मे बुरा फंसा था किसको कोसे ? जी गृहस्थी उसकी चल रही थी ………सचमुच रामभरोसे ।

आज शर्मा जी के द्वार पर सौभाग्य ने फिर दस्तक दी थी, रामआसरे की मेहनत रंग लायी और शर्मा जी को सक्षम अधिकारी चयनित किया गया।

इधर बधाइयाँ देने वालों का तांता लगा हुआ था और शोरोगुल के बीच रामआसरा कोने से लगा अपने बच्चे का फोन सुनते ही उसके माथे पर असंख्य टेढे मेढ़े रास्ते उभर आए और वह मूर्छित हो गिर पड़ा था। शायद उसकी गृहस्थी से राम का भरोसा भी उठ गया था ।

 


   


कवि परिचय-


विजय कुमार शर्मा

कार्यक्षेत्र- शिक्षक (हिन्दी, पंजाबी, अंग्रेजी)

शैक्षणिक योग्यता- स्नातक हिन्दी(आनर्स) स्नातकोत्तर(अंग्रेजी)

अभिरुचि- समसामयिक विषयों का अध्ययन उपरांत चिन्तन एवं लेखन। लघुकथा लेखन में विशेष रुचि।

 


 


 


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